वसई-विरार नगर निगम के पूर्व आयुक्त और आईएएस अधिकारी अनिल पवार की गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अब एक नया दौर शुरू हो गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पवार की गिरफ्तारी को ‘अवैध’ घोषित किए जाने के बाद, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।सोमवार(27 अक्तूबर) को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और इस पर सुनवाई के लिए अपनी तत्परता दिखाई।
‘ईडी’ ने अनिल पवार को 13 अगस्त, 2025 को गिरफ्तार किया था। संगठन ने आरोप लगाया कि 2008 से 2010 के बीच महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) के अधिकारियों द्वारा निर्माण पेशेवरों की मिलीभगत से 41 अनधिकृत इमारतों का निर्माण किया गया था।
ईडी के अनुसार, इस दौरान पवार को भारी वित्तीय लाभ हुआ और जाँच के दौरान मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी सक्रिय भागीदारी के सबूत सामने आए। यह आरोप फरवरी और 13 अगस्त, 2025 के बीच की गई जाँच पर आधारित था। अनिल पवार ने अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने दावा किया था कि ईडी ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए मनमाने ढंग से गिरफ्तारी की है।
रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेजों की जाँच के बाद, उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि, “अनिल पवार को 13 अगस्त, 2025 को गिरफ्तार करने के लिए प्रथम दृष्टया कोई सबूत उपलब्ध नहीं है।”इसलिए, न्यायालय ने गिरफ्तारी को ‘अवैध’ घोषित किया और पवार को राहत दी।
ईडी ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष अपील दायर की। सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने पवार से जवाब माँगा और सुनवाई अगले तीन सप्ताह बाद तय की।अनिल पवार 2014 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, जिन्होंने 13 जनवरी, 2022 को वसई-विरार नगर निगम के आयुक्त का पदभार संभाला। वे 25 जुलाई, 2025 तक इस पद पर रहे। उन्होंने सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा, “यह कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है और मेरे खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं।”
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