दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थाओं में से एक बीबीसी (BBC) अब खुद अपने पत्रकारिता मानदंडों के उल्लंघन पर कटघरे में खड़ा हो गया है। 14 जुलाई को बीबीसी ने स्वीकार किया कि उसकी डॉक्युमेंट्री “Gaza: How to Survive a Warzone” ने उसके संपादकीय दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन किया। डॉक्युमेंट्री का नैरेशन एक 13 वर्षीय लड़के से कराया गया था, जो हमास सरकार के कृषि मंत्रालय में उपमंत्री का बेटा है — इस तथ्य को बीबीसी से जानबूझकर छिपाया गया।
बीबीसी डायरेक्टर जनरल टिम डेवी द्वारा शुरू की गई जांच में यह सामने आया कि डॉक्युमेंट्री में प्रयुक्त नाबालिग नैरेटर की पारिवारिक पृष्ठभूमि (हमास से जुड़ाव) के बारे में बीबीसी को जानबूझकर गुमराह किया गया। डॉक्युमेंट्री को Hoyo Films नामक स्वतंत्र प्रोडक्शन कंपनी ने बनाया था और बीबीसी ने उसे फरवरी में iPlayer से हटा दिया था जब संदेह सामने आया। जांच में सामने आया कि कम-से-कम तीन प्रोडक्शन सदस्यों को यह बात पता थी कि बच्चा हमास मंत्री का बेटा है, फिर भी बीबीसी को यह नहीं बताया गया।
बीबीसी न्यूज की सीईओ डेबोरा टर्नेस ने कहा, “हमने अपनी गलती स्वीकार की है। यह एक बड़ा संपादकीय फेलियर है।” उन्होंने बताया कि अब बीबीसी डॉक्युमेंट्री रिलीज़ के लिए ‘फर्स्ट गेट’ नामक नया इंटरनल कम्प्लायंस सिस्टम लाएगा, जिससे भविष्य में इस तरह की गलती न हो। बीबीसी ने यह भी स्वीकार किया कि प्रोडक्शन से बार-बार सवाल पूछे गए, लेकिन स्पष्ट जवाब कभी नहीं मिले।
“Gaza: How to Survive a Warzone” डॉक्युमेंट्री को जेमी रॉबर्ट्स और यूसुफ हम्माश ने डायरेक्ट किया था। इसमें गाज़ा में रहने वाले चार बच्चों की ज़िंदगी को युद्ध के बीच दिखाया गया था। इसकी पूरी शूटिंग रिमोट तरीके से हुई थी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया को गाज़ा में प्रवेश की इजाज़त नहीं थी। हालांकि, जब यह सामने आया कि नैरेटर लड़का एक हमास मंत्री का बेटा है, और यह तथ्य बीबीसी से छिपाया गया, तो इसका प्रसारण रोक दिया गया।
Campaign Against Antisemitism नामक संगठन ने इस डॉक्युमेंट्री को “पब्लिक फंड्स का दुरुपयोग” बताया और कहा कि यह बीबीसी द्वारा जानबूझकर किया गया ‘व्हाइटवॉश’ था। ऑफ़कॉम (Ofcom) — ब्रिटेन का मीडिया रेगुलेटर — अब इस मामले की औपचारिक जांच कर रहा है कि क्या बीबीसी ने दर्शकों को गुमराह किया।
बीबीसी ने एक अन्य डॉक्युमेंट्री “Gaza: Doctors Under Attack” को भी इम्पार्शियलिटी (पक्षपात रहितता) के उल्लंघन के कारण रोक दिया था। डॉक्युमेंट्री की पत्रकार रमीता नवई ने बीबीसी रेडियो 4 पर इज़राइल को “रॉग स्टेट” और “जातीय सफाया करने वाला” बताया था।
बीबीसी की सीईओ टर्नेस ने कहा, “ऐसे बयान कोई बीबीसी पत्रकार ऑन एयर नहीं दे सकता। इसलिए डॉक्युमेंट्री को आगे नहीं बढ़ाया गया।” Hoyo Films ने बीबीसी की जांच रिपोर्ट स्वीकारते हुए माफी मांगी है और कहा है कि वह आंतरिक प्रक्रियाओं को बेहतर बनाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने जानबूझकर बीबीसी को गुमराह नहीं किया, लेकिन अपनी चूक को गंभीरता से लिया है।
डायरेक्टर जनरल टिम डेवी ने कहा,“यह संपादकीय सत्यता की गंभीर विफलता है। हम इस पर दो मोर्चों पर काम करेंगे — एक, जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना और दो, ऐसी घटनाओं को दोहराने से रोकना।” बीबीसी बोर्ड ने भी बयान जारी किया कि “हमारी पत्रकारिता में भरोसा और पारदर्शिता सबसे अहम हैं।”
इस प्रकरण ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बीबीसी जैसे वैश्विक मीडिया संस्थान ‘नैरेटिव’ बनाने के लिए ‘एडिटोरियल नैतिकता’ की बलि दे रहे हैं?
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