चुनावी माहौल से गरमाए बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गमछा लहराना, एक नया राजनीतिक प्रतीक बन गया है। शुक्रवार (31 अक्तूबर) को मुज़फ्फरपुर में हुई उनकी जनसभा के दौरान जब प्रधानमंत्री ने अपने सिग्नेचर अंदाज़ में गमछा लहराया, तो मैदान में मौजूद समर्थकों की भीड़ “मोदी, मोदी” के नारों से गूंज उठी। यह वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी का हेलिकॉप्टर जैसे ही मुज़फ्फरपुर के मैदान में उतरा, वहां मौजूद हजारों समर्थकों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। उमस भरे मौसम में प्रधानमंत्री ने जब अपने हाथ में लिया हुआ मधुबनी प्रिंट वाला गमछा भीड़ की ओर लहराया, तो माहौल जोश से भर गया। करीब 30 सेकंड तक चले इस ‘गमछा वेव’ के बाद वे छपरा की जनसभा के लिए रवाना हो गए।
यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री ने ऐसा इशारा किया हो। अगस्त में उन्होंने औंटा-सिमरिया पुल के उद्घाटन के बाद भी लोगों की भीड़ की ओर गमछा लहराया था। मोदी का यह अंदाज़ अब बिहार में उनकी सभाओं की एक पहचान बन चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी की इस शैली के पीछे एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ छिपा है। भारत के कई हिस्सों, खासकर बिहार और बंगाल जैसे गर्म और आर्द्र राज्यों में गमछा मेहनतकश वर्ग और किसानों की पहचान माना जाता है। यह न केवल पसीना पोंछने या धूप से बचाव के लिए सिर पर बांधा जाने वाला कपड़ा है, बल्कि ग्रामीण जीवन का अहम हिस्सा भी है।
राजनीतिक दलों ने वर्षों से इसे अपने अभियानों और रैलियों में प्रतीक के रूप में अपनाया है। ऐसे में प्रधानमंत्री का गमछा लहराना जनता से सीधा जुड़ाव दिखाने का तरीका है। यह संदेश देने का कि वे किसानों और श्रमिकों के साथ खड़े हैं।आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार बिहार की कार्यशील आबादी का लगभग 53.2 प्रतिशत हिस्सा कृषि पर निर्भर है। राज्य में बड़ी संख्या में भूमिहीन मजदूर और प्रवासी श्रमिक भी हैं, जिनका चुनावों में महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री का यह प्रतीकात्मक कदम बिहार के ग्रामीण मतदाताओं से भावनात्मक जुड़ाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है। एनडीए को यदि तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के नेतृत्व वाले गठबंधन का मुकाबला करना है, तो उसे गांवों और खेतों तक पहुंच बनानी होगी।
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