भाजपा की ‘सप्राइज पॉलिटिक्स’ की खासियत में नितिन नबीन नई कड़ी।

भाजपा की ‘सप्राइज पॉलिटिक्स’ की खासियत में नितिन नबीन नई कड़ी।

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भारतीय राजनीति में यदि किसी दल ने नेतृत्व चयन में ‘सरप्राइज पॉलिटिक्स’ को सबसे प्रभावी ढंग से साधा है, तो वह भारतीय जनता पार्टी ने। बार-बार ऐसा देखा गया है कि पार्टी स्पष्ट दावेदारों और बड़े नामों को दरकिनार करते हुए अपेक्षाकृत लो-प्रोफाइल, लेकिन संगठनात्मक रूप से भरोसेमंद नेताओं को शीर्ष जिम्मेदारियां सौंपती है। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नितिन नबीन की नियुक्ति इसी लंबे पैटर्न की ताजा कड़ी मानी जा रही है।

करीब 45 वर्षीय नितिन नबीन को पार्टी के भीतर एक युवा और मेहनती संगठन शिल्पी के रूप में देखा जाता है। बिहार में भाजपा की युवा इकाई का नेतृत्व करने से लेकर चुनावी प्रबंधन और बाद में नीतीश कुमार सरकार में मंत्री पद तक, उन्होंने लगभग दो दशकों तक संगठन के अलग-अलग स्तरों पर काम किया है। बाहरी नजर से यह नियुक्ति अचानक और अप्रत्याशित लग सकती है, लेकिन भाजपा के आंतरिक ढांचे में इसे एक सुनियोजित और दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

नितिन नबीन की ताजपोशी भाजपा के ‘सरप्राइज पॉलिटक्स’ में पूरी तरह फिट बैठती है, जिसमें पार्टी जनाधार से अधिक संगठनात्मक दक्षता, बूथ-स्तरीय समझ और कैडर मैनेजमेंट को प्राथमिकता देती है। वह कोई बड़े जननेता नहीं माने जाते, लेकिन पार्टी के लिए अनुशासित और भरोसेमंद चेहरा जरूर हैं।

यह कोई रणनीति नई नहीं है। भाजपा इससे पहले भी कई राज्यों में ऐसे मुख्यमंत्री चुन चुकी है, जिनके नाम चुनाव प्रचार के दौरान प्रमुखता से सामने नहीं थे। राजस्थान में हैट्रिक जीत के बाद पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाना इसका बड़ा उदाहरण रहा। तीन दशकों की संगठनात्मक निष्ठा उनके चयन का प्रमुख आधार बताई गई।

मध्य प्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र तोमर जैसे अनुभवी नेताओं को किनारे रखकर मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया। सीमित राष्ट्रीय पहचान के बावजूद, ओबीसी समीकरण और संगठनात्मक स्वीकार्यता उनके पक्ष में गई। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय का चयन भी इसी सोच के अनुरूप रहा। इन राज्यों में उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति ने यह संकेत दिया कि भाजपा सत्ता को व्यक्ति-केंद्रित नहीं होने देना चाहती।

गुजरात में हाल ही में हर्ष संघवी को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने को भी इसी अप्रत्याशित लेकिन नियंत्रित रणनीति के रूप में देखा गया। इन सभी फैसलों को जोड़कर देखा जाए तो तस्वीर साफ होती है, पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा राज्य नेतृत्व को दीर्घकालिक दृष्टि से पुनर्गठित कर रही है।

इसी प्रकरण भाजपा नितिन नबीन की सरप्राइज पॉलिटक्स की कड़ी यह सुनिश्चित करने के लिए है की भाजपा का राष्ट्रिय नेतृत्व भी दीर्घकालिक दृष्टी से पनर्गठीत हो।

आलोचक सवाल उठाते हैं कि क्या भाजपा जननेताओं की उपेक्षा कर रही है। संभव है कि ऐसे फैसले महत्वाकांक्षी नेताओं को असहज करें। लेकिन मोदी-शाह यह जोखिम उठाने को तैयार दिखते है। इसके उलट परिवारवाद से जूझती कई पार्टियां ऐसे सरप्राइज पैकेज और संगठनात्मक बदलाव में कमजोर पड़ी दिखती है।

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