केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब बजट पेश किया तो उसमें नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में न्यूक्लियर एनर्जी की प्राथमिकताओं पर भी जोर दिया| पिछले कुछ वर्षों से भारत न्यूक्लियर एनर्जी की क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और स्मॉल मॉडुलर रिएक्टर इस नेतृत्व का एक प्रमुख अंग है|
भारत की सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम ने स्वतंत्रता से ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसके चलते देश में एनर्जी के क्षेत्र में समय समय पर उत्थान देखने को मिला है| ऐसे में स्मॉल मॉडुलर रिएक्टर की तकनीक से भारत प्रगति की नयी उंचाईयों को प्राप्त कर सकता है|
गौरतलब है कि सिर्फ भारत ही एकलौता ऐसा देश नहीं है जो यह सोच रखता है इस मामले में दुनिया के कई प्रगतिशील देशों की यही साझा सोच है की विकास के लिए नवीकरणीय एनर्जी के स्त्रोतों की आवश्यकता है और सभी उपलब्ध विकल्पों में से न्यूक्लियर सबसे ज़्यादा उपयोगी है| इसका प्रमुख उदहारण है रूस की रोसटम कंपनी जिसने भारत के साथ एस.एम.आर. तकनीक में साझेदारी के प्रस्ताव रखा है|
रोसनेट दुनिया की एक प्रमुख न्यूक्लिर एनर्जी कंपनी है जो कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट का निर्माण कर रहा है| रूस के साथ साथ फ्रांस भी इस दौड़ में तेज़ी से आगे बढ़ता नज़र आ रहा है| फ्रांस की कंपनी ई.डी.एफ.ने भी भारत के साथ न्यूक्लिर क्षेत्र में भागेदारी की इच्छा जताई है|
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी फ्रांस की यात्रा के तहत हाई – टेक को ऑपरेशन और सिविल न्युक्लियर प्रोग्राम को लेकर निर्णय लिए जाने की बड़ी सम्भावना है| 2008 में भारत और फ्रांस ने एमओयू हस्ताक्षर करके जैतपुरा के न्युक्लियर पावर प्लांट की स्थापना का कार्य शुरू किया, लेकिन ज़्यादा लागत और कानूनी तकनीकियों के कारण यह प्रोग्राम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है| आशा जताई जा रही है की इस बार पीएम की यात्रा के दौरान कई महत्वूर्ण निर्णय लिए जायेंगे और न्यूक्लिअर प्रोग्राम उसका केंद्र होगा|
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