बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर सियासी रस्साकशी चरम पर पहुंच गई है। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच जारी वार्ताएं अब तक नतीजे पर नहीं पहुंच सकी हैं। नई दिल्ली और पटना में हुई बैठकों के बाद भी गतिरोध बना हुआ है। इस बीच राजद द्वारा अपने कुछ नेताओं को चुनाव चिह्न (सिंबल) बांटने और बाद में वापस लेने से गठबंधन के भीतर असमंजस और बढ़ गया है।
सोमवार (13 अक्तूबर)देर रात पटना में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कुछ संभावित प्रत्याशियों को पार्टी का चुनाव चिह्न सौंप दिया था। इस समय तेजस्वी यादव दिल्ली में कांग्रेस नेताओं से बातचीत कर रहे थे। जब कांग्रेस की नाराज़गी की खबर दिल्ली से पटना पहुंची तो तेजस्वी ने तुरंत राजद नेताओं को राबड़ी देवी के आवास पर बुलाया और उनसे चुनाव चिह्न वापस ले लिए।तेजस्वी ने कहा कि कांग्रेस की सहमति के बिना किसी सीट पर घोषणा नहीं की जाएगी। सभी नेताओं को चुपचाप चिह्न लौटाने के निर्देश दिए गए।
नई दिल्ली में सोमवार को तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेताओं की अहम बैठक हुई, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। बताया जा रहा है कि तेजस्वी ने बैठक में कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में गठबंधन आगे नहीं बढ़ सकता। कांग्रेस ने 61 से 63 सीटों की मांग पर अडिग रुख अपनाया है, जबकि राजद कुछ पारंपरिक सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है।
कांग्रेस ने खास तौर पर कहलगांव, नरकटियागंज और वसलीगंज जैसी सीटें अपने लिए मांगी हैं। साथ ही चैनपुर और बछवाड़ा पर भी चर्चा हुई, हालांकि इन पर विवाद अपेक्षाकृत कम है। राजद 61 सीटों के फार्मूले पर सहमत है, लेकिन कांग्रेस द्वारा मांगी गई इन सीटों को छोड़ने से इनकार कर रही है।
सोमवार रात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, के.सी. वेणुगोपाल और बिहार कांग्रेस नेताओं के बीच बैठक हुई, जिसमें विवादित सीटों पर खड़गे से हस्तक्षेप की मांग की गई। हालांकि खड़गे ने कहा कि राज्य नेतृत्व खुद तेजस्वी यादव से सीधे बातचीत करे और मंगलवार तक मसला सुलझाने की कोशिश करे।
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 19 पर जीत दर्ज की थी। वहीं, राजद 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। इस बार 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के चुनाव दो चरणों 6 और 11 नवंबर को होंगे, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी।
राजद और कांग्रेस के बीच चल रही यह खींचतान न केवल महागठबंधन के भीतर असंतोष को उजागर करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि आगामी चुनाव में विपक्षी एकता की राह आसान नहीं होगी। फिलहाल सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या तेजस्वी और कांग्रेस के नेता अंतिम समय में कोई सहमति बना पाते हैं या बिहार का गठबंधन एक बार फिर टूट की ओर बढ़ रहा है।
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