हाल ही में एसबीआई के इकोनॉमिक रिसर्च डिपार्टमेंट ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की। जिसमें उनके निरक्षण से उन्होंने स्पष्ट किया है की, 2014-23 तक भारत में 12 करोड़ रोजगार निर्माण हुए, जबकि 2004 से 2014 के दरम्यान भारत में केवल 2.9 करोड़ रोजगार का निर्माण हो पाया।
एसबीआई ने कहा है की यह स्टडी आरबीआई से मिली जानकारी पर आधारित है। जिसमें रोजगार निर्माण से जुड़े तथ्यों पर एसबीआई ने लिखा, “भले ही हम कृषि को छोड़ दें,निर्माण और सेवाओं में सृजित नौकरियों की कुल संख्या FY14-FY23 के दौरान 8.9 करोड़ और FY04-FY14 के दौरान 6.6 करोड़ है…”|
इसी के साथ उद्यम रजिस्ट्रेशन पोर्टल के अनुसार भारत के रजिस्टर्ड एमएसएमई अर्थात सुक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योगों की संख्या ने 20 करोड़ का आंकडा पार कर लिया है। इकॉनिमिक रिसर्च डिपार्टमेंट ने यह विश्लेषित किया है की इस माह (4 जुलाई) तक, 4.68 करोड़ रजिस्टर्ड एमएसएमई उद्योगो ने 20.19 करोड़ नौकरियों की सूचना दी, जिसमें जीएसटी-मुक्त सूक्ष्म उद्यमों द्वारा 2.32 करोड़ रोजगार भी शामिल हैं, जो पिछले साल जुलाई में 12.1 करोड़ नौकरियों से अधिक है।
एसबीआई की इस रिपोर्ट को कोट करते हुए केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पियूष गोयल ने अपने एक्स’ अकाउंट से कहा है की, “भारत ने वित्त वर्ष 2014-2023 के दौरान 12.5 करोड़ नौकरियां पैदा की हैं, जबकि वित्त वर्ष 2004-2014 के दौरान यह केवल 2.9 करोड़ थी। अंतर स्पष्ट है !
मोदी सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहल और उपाय। पिछले10 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने और हमारे देश की आर्थिक वृद्धि में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”
India has created 12.5 crore jobs during FY 2014-2023, compared to only 2.9 crore during FY 2004-2014. The difference is clear!
Various initiatives & measures undertaken by Modi Govt. in the last 10 years have been instrumental in generating employment opportunities across… pic.twitter.com/oHKba7RHJA
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) July 11, 2024
इस डेटा पर बात करते हुए एसबीआई की ग्रुप चीफ इकोनॉमिक सलाहगार सौम्या कांति घोष ने कहा की, “ईपीएफओ (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) डेटा की केएलईएमएस (कैपिटल, लेबर, ऊर्जा, मटेरियल और सेवा/एस) डेटा के साथ तुलना करने पर एक दिलचस्प तथ्य सामने आता है। जब हमने केएलईएमएस के साथ ईपीएफओ की हिस्सेदारी ली, तो 2024 की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत थी, जो 5-वर्ष की अवधि (2019-2023) की औसत हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से काफी कम है। चूंकि ईपीएफओ डेटा मुख्य रूप से कम आय वाली नौकरियों पर कब्जा करता है, इसलिए गिरती हिस्सेदारी संकेत देती है कि अर्थव्यवस्था में संभवतः बेहतर वेतन वाली नौकरियां उपलब्ध हो रही हैं।”
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