2023 के अगस्त में चेम्बूर के.एन.जी.आचार्य और डी.के. मराठे कॉलेज में जूनियर कॉलेज की छात्राओं ने हिजाब पहनकर कॉलेज के ड्रेस कोड का उल्लंघन करने पर कॉलेज प्रशासन ने उन्हें कॉलेज में प्रवेश से मना किया। जिसके बाद स्कूल – कॉलेजों में ड्रेस कोड यानि स्कूल यूनिफॉर्म और हिजाब को लेकर राज्यभर में चर्चा का विषय बना हुआ है|
इस वर्ष के मई महीने में दोनों विद्यालयों ने अपने नियमों को और कठोर करते हुए नया ड्रेस कोड जारी किया जो इस शैक्षणिक वर्ष से लागू होगा। इस ड्रेस कोड के बारे में स्पष्ट रूप से लिखा गया है की कोई भी धार्मिक पहनावा, हिजाब, नकाब, स्टोल, टोपी, बैच पहनकर विद्यालयों में प्रवेश नहीं दिया जायेगा। इसी से आहत होकर स्कूल-कॉलेज की कुल ९ छात्राओं ने स्कूल प्रशासन पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) (ए), और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन होने की बात करते हुए विद्यालयों के ड्रेस कोड को लेकर उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
हाल ही में मुंबई उच्च न्यायलय ने इस विषय पर कर्नाटक उच्च न्यायालय को मद्देनजर रखते हुए छात्राओं की याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की बेंच ने निरीक्षण किया की, कॉलेज द्वारा जारी ड्रेस कोड ‘व्यापक शैक्षणिक हित में था और इसमें कोई कमी नहीं थी, जिससे संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए), और अनुच्छेद 25 का उल्लंघन हो। न्यायपीठ ने आगे कहा, इसे जारी करने का उद्देश्य यह है की छात्र की परिधान से उसका धर्म उजागर न हो, यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है की छात्र ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित रखें।
न्यायपीठ ने इस बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया की हिजाब या नकाब पहनना याचिकाकर्ताओं के लिए आवश्यक धार्मिक प्रथा है।बेंच ने इस बात को माना की विद्यालयों के जारी निर्देश “जाती, पंथ, धर्म या भाषा से परे सभी छात्रों के लिए लागू होते है। इसीलिए वो यूजीसी के दिशा निर्देशों का उल्लंघन नहीं करते।
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