केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने मंगलवार (23 जुलाई) को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का बजट पेश किया। जिसके बाद से विरोधकों ने राज्यों में हाय- तौबा का माहौल खड़ा कर दिया है। विरोधकों का कहना है की इस बजट से उनके राज्यों को कुछ नहीं मिला है। जिसपर जवाब देते हुए निर्मला सीतारमन ने विरोधकों पर बरस पड़ी है।
अनेकों राज्य से विरोधकों का कहना है की उनके राज्य को कुछ नहीं मिला है और उनके राज्य के साथ केंद्र सरकार ने भेदभाव किया है। इसी सन्दर्भ में संसद में नारेबाजी करते हुए विरोधकों ने संसद सत्र से वाकआउट किया है। कांग्रेस ने भी मोदी सरकार ने बजट के जरिए राज्यों के साथ पक्षपात करने और राज्यों को कुछ न देने की बात पर जोर दिया है।
विरोधकों के आरोपों पर अपना पक्ष रखने के बाद उन्होंने कहा, बजट में किसी राज्य की उपेक्षा नहीं की गयी है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दल जानबूझकर नागरिकों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। आप को बता दें उनके भाषण के शुरु होते ही विपक्षी सांसद राज्यसभा से बाहर चले गए।
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अपने स्पष्टीकरण में उन्होंने कहा, “हर बजट में, आपको देश के हर राज्य का नाम बताने का मौका नहीं मिलता है। कैबिनेट ने वाढवणे बंदरगाह बनाने का फैसला किया है। उस प्रोजेक्ट के लिए 76 हजार करोड़ रुपये का ऐलान किया गया है। हालांकि कल के बजट में महाराष्ट्र का नाम नहीं लिया गया। इसका मतलब यह नहीं है कि महाराष्ट्र की उपेक्षा की गई है। अगर बजट भाषण में किसी विशेष राज्य का नाम नहीं है तो क्या इसका मतलब यह है कि भारत सरकार का कार्यक्रम इन राज्यों तक नहीं जा रहा है? यह कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष द्वारा लोगों के बीच गलत धारणा पैदा करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है कि केंद्र ने हमारे राज्यों को कुछ नहीं दिया है और यह अत्यंत निंदनीय है।”
महाराष्ट्र को बजट से और क्या मिला?
निर्मला सीतारमन ने कांग्रेस के वाकआउट पर गंभीरता से कहा, “विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी राय व्यक्त करने के लिए खड़े हुए। लेकिन, वे मेरी राय सुनने के लिए नहीं रुके। कम से कम लोकतंत्र की खातिर उन्हें यहीं रुकना चाहिए था। इस देश में कांग्रेस पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रही है। उन्होंने कई अलग-अलग बजट पेश किए हैं। क्या कांग्रेस इतना भी नहीं जानती सभी राज्यों का नाम बजट के दरम्यान लेना मुमकिन नहीं।”
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