पश्चिम बंगाल में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की अवधारणा असंभव हो चूका है। हालिया घटनाक्रम में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गहराते सवाल और प्रशासनिक ढांचे की विसंगतियां यह संकेत देती हैं कि ममता बनर्जी के शासन में यह लोकतांत्रिक आदर्श सिर्फ एक भ्रम बनकर रह गया है।
पिछले सप्ताह एक प्रशासनिक बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ब्लॉक लेवल ऑफिसर्स (BLOs) को स्पष्ट रूप से याद दिलाया कि वे राज्य सरकार के कर्मचारी हैं, चुनाव आयोग के नहीं। उन्होंने BLOs से यह भी कहा कि मतदाता सूची से एक भी नाम नहीं हटना चाहिए, और मतदाताओं को परेशान न किया जाए। उन्होंने जोड़ा, “चुनाव घोषित होने के बाद यह (ECI के तहत) आता है। उससे पहले और बाद में यह राज्य सरकार के तहत है।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है। यह अभ्यास मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, लेकिन ममता बनर्जी ने इसे “बंगालियों को लक्षित करने वाली कार्रवाई” बताया है और विरोध दर्ज कराया है।
पश्चिम बंगाल भारत का एकमात्र राज्य है जहाँ मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) का कार्यालय राज्य सरकार के गृह एवं पर्वतीय मामलों के विभाग के अधीन कार्य करता है — और वह भी बिना किसी वित्तीय व प्रशासनिक स्वतंत्रता के। चुनाव आयोग (ECI) ने हाल ही में इसे लेकर कड़ी आपत्ति जताई है और 17 जुलाई को राज्य मुख्य सचिव को पत्र लिखकर सीईओ कार्यालय को स्वतंत्र विभाग घोषित करने का निर्देश दिया। चुनाव आयोग के अनुसार, “CEO कार्यालय एक अधीनस्थ शाखा के रूप में कार्य कर रहा है, जबकि CEO एक अतिरिक्त मुख्य सचिव (ACS) रैंक का अधिकारी है। इससे संस्थागत स्वायत्तता बाधित होती है।”
राज्य में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ की घटनाएं वर्षों से चिंता का विषय रही हैं। मुर्शिदाबाद और मालदा जैसे सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी का अनुपात बढ़ा है — मुर्शिदाबाद में 2001 में 63.7% से बढ़कर 2011 में 66.3% और मालदा में 49.7% से बढ़कर 51.3% हो गया। नई जनगणना आने पर और भी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ सकते हैं।
भाजपा के अनुसार, अवैध रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल किया जा रहा है। विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया कि 25 जुलाई के बाद अचानक 70,000 से अधिक Form-6 आवेदन सामने आए हैं, जिनमें से अधिकतर सीमा जिलों में हैं — जैसे कि कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, मुर्शिदाबाद, और उत्तर 24 परगना। शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी के बयान को “चुनाव आयोग के कार्य में सीधा और अनुचित हस्तक्षेप” बताया और इसके खिलाफ मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखा है। उनका दावा है कि राज्य सरकार चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है।
पश्चिम बंगाल की चुनावी व्यवस्था में जो संरचनात्मक, जनसांख्यिकीय और राजनीतिक स्तर पर विसंगतियां हैं, वे एक निष्पक्ष चुनाव की संभावना को दिन-ब-दिन कम करती जा रही हैं। जब मुख्यमंत्री BLOs को राज्य का वफादार कहती हैं, जब CEO का कार्यालय राज्य सरकार के अधीन होता है, और जब अवैध नागरिकों को मतदाता बनाया जाए तो निष्पक्ष चुनाव होना असंभव है।
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