याचिकाकर्ता: इन याचिकाओं में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, आप विधायक अमानतुल्ला खान, RJD सांसद मनोज झा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, और अन्य धार्मिक संगठन शामिल हैं।
याचिकाओं की आपत्तियाँ: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधित कानून वक्फ संपत्तियों पर मनमाने प्रतिबंध लगाता है, मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करता है, और वक्फ बोर्डों को प्रदान की गई सुरक्षा को समाप्त करता है, जिससे मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव होता है।
सरकारी पक्ष: केंद्र सरकार ने अदालत में एक कैविएट दाखिल किया है ताकि बिना उनकी जानकारी के कोई एकतरफा आदेश न दिया जाए। इसके अलावा, छह भाजपा-शासित राज्यों—असम, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और महाराष्ट्र—ने संशोधन का समर्थन करते हुए अदालत में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं।
विरोध और आंदोलन: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 11 अप्रैल से “वक्फ बचाओ अभियान” शुरू किया है, जो 87 दिनों तक चलेगा। इस अभियान के तहत, वे वक्फ कानून के खिलाफ 1 करोड़ हस्ताक्षर एकत्र कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपने की योजना बना रहे हैं।Bhaskar English
कानूनी चुनौती: अधिवक्ता हरी शंकर जैन ने वक्फ अधिनियम, 1995 की वैधता को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है, जिसमें दावा किया गया है कि यह अधिनियम गैर-मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और मुस्लिम समुदाय को अनुचित लाभ प्रदान करता है।
यह मामला देश में धार्मिक अधिकारों, संपत्ति के नियंत्रण और अल्पसंख्यक समुदायों की स्वायत्तता से संबंधित महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दों को उठाता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव हो सकता है।
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