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कर्नाटक: एक दिन में पांच बाघों की मौत के बाद तीन अधिकारीयों पर गिरी ग़ाज !

शिकार रोकथाम कैंप के कर्मचारी तीन महीने से वेतनवंचित

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कर्नाटक के माले महादेश्वर हिल्स वन क्षेत्र में बाघिन और उसके चार शावकों की रहस्यमय मौत के मामले ने राज्य में वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बढ़ते जनदबाव और वन अधिकारियों की लापरवाही पर उठते आरोपों के बीच राज्य सरकार की ग़ाज तीन वरिष्ठ वन अधिकारियों पर गिरी है। सरकार ने सोमवार (30 जून) को तीन वरिष्ठ वन अधिकारियों को ‘अनिवार्य अवकाश’ पर भेज दिया है।

प्रधान मुख्य वनसंरक्षक मीनाक्षी नेगी द्वारा जारी आधिकारिक आदेश के अनुसार:

  • वाई. चक्रपाणि, उप वन संरक्षक (DCF), माले महादेश्वर हिल्स वन्यजीव प्रभाग, कोलेगल
  • गजानन हेगड़े, सहायक वन संरक्षक (ACF), हनूर उप-मंडल
  • मदेश, उप-मंडल वन अधिकारी (RFO), हुग्यम रेंज प्रभारी

इन तीनों अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से छुट्टी पर भेजा गया है। सरकार ने इनके स्थान पर वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है और उन्हें तुरंत कार्यभार संभालने के निर्देश दिए हैं।

बाघिन और उसके चार शावकों के शव मीन्यम वन क्षेत्र, जो कि हुग्यम रेंज के अंतर्गत आता है, में सड़क से महज 100 मीटर की दूरी पर पाए गए। यह जगह उस कैंप से भी केवल 800 मीटर दूर थी, जिसे शिकार रोकने के लिए स्थापित किया गया था। आश्चर्यजनक रूप से, कई दिनों तक शव सड़ते रहे लेकिन विभाग को कोई जानकारी नहीं थी।

प्रारंभिक जांच में यह सामने आया कि बाघिन ने एक गाय का शिकार किया था और उसे जंगल में खींच ले गई थी। बाद में उसने और उसके शावकों ने गाय के मांस को खाया। जब वे दोबारा मांस खाने लौटे, तो आशंका है कि उन्होंने जहर मिला मांस खा लिया जिससे उनकी मौत हो गई।

तीन लोगों की गिरफ्तारी:

वन विभाग ने इस जघन्य घटना के संबंध में तीन लोगों को पिछले शनिवार (28 जून) को गिरफ्तार किया था। इस बीच यह भी सामने आया है कि शिकार रोकथाम कैंप के कर्मचारी तीन महीने से वेतनवंचित थे, जिससे निगरानी व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि संबंधित उप-मंडल वन अधिकारी और गश्ती कर्मचारियों के खिलाफ अलग से अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इस कार्रवाई की ज़िम्मेदारी चामराजनगर सर्कल के मुख्य वन संरक्षक को सौंपी गई है।

वन्यजीव प्रेमियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस घटना पर गहरा रोष व्यक्त किया है। वन्यजीव संरक्षण की दिशा में विफलता, ज़मीनी निगरानी की कमी और विभागीय उदासीनता को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या इस बार दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी या मामला एक बार फिर जांच की आड़ में दबा दिया जाएगा।

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