वांगचुक का कहना है कि उनका संस्थान विदेशी फंड पर निर्भर नहीं है, बल्कि ज्ञान निर्यात कर राजस्व अर्जित करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन तीन मामलों को विदेशी योगदान माना गया, वे दरअसल संयुक्त राष्ट्र, एक स्विस विश्वविद्यालय और एक इटैलियन संगठन के साथ सेवा समझौते थे, जिन पर सरकार को टैक्स भी चुकाया गया।
सीबीआई ने 2022 से 2024 तक की फंडिंग से जुड़े दस्तावेज मांगे हैं, लेकिन वांगचुक के अनुसार, जांच अधिकारी 2020-21 के रिकॉर्ड और स्कूलों के कागजात भी मांग रहे हैं।
उनका आरोप है कि यह कार्रवाई एक क्रमबद्ध दबाव रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि पहले उन पर राजद्रोह का केस हुआ, फिर संस्थान को आवंटित जमीन वापस ली गई और अब सीबीआई व आयकर विभाग की जांच शुरू है।
इसी बीच, वांगचुक ने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर 10 सितंबर से भूख हड़ताल शुरू की थी। लेकिन हालात तब बिगड़े जब क्षेत्र में 1989 के बाद की सबसे गंभीर हिंसा भड़की। युवाओं ने भाजपा मुख्यालय और हिल काउंसिल को निशाना बनाया, वाहनों में आगजनी की। पुलिस और अर्धसैनिक बलों को हालात काबू में करने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े।
झड़पों में चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई, जबकि 30 पुलिसकर्मियों समेत 80 से अधिक लोग घायल हुए। गृह मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि वांगचुक के भड़काऊ बयानों से भीड़ उकसी। हिंसक घटनाओं के बीच उन्होंने उपवास तोड़ दिया और गांव लौट गए।
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