तमिलनाडु में पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.के. अलागिरी के बेटे दुरई दयानिधि के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बड़ी कार्रवाई की, जिससे प्रदेश की राजनीति में भूचाल आया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने ओलंपस ग्रेनाइट्स कंपनी के जरिए मदुरै की सरकारी जमीन से अवैध रूप से ग्रेनाइट निकाला, जिससे सरकार को तकरीबन 259 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यह मामला अब मदुरै की सीबीआई अदालत में विचाराधीन है।
ईडी की ओर से बताया गया कि यह पूरा मामला मदुरै ज़िले के मेलूर तालुका स्थित कीलावलावु क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। यहां दुरई दयानिधि और उनके साथी एस. नागराजन ने कथित रूप से सरकारी जमीन से नियमों को ताक पर रखकर ग्रेनाइट का खनन किया। इस सिलसिले में 2012 में कीलावलावु पुलिस ने भारतीय दंड संहिता, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम और विस्फोटक अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। इसके बाद 2018 में मेलूर न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट में 5,191 पन्नों की चार्जशीट दायर की गई, जिसमें दुरई समेत कई आरोपियों का नाम शामिल था।
धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत ईडी ने इस केस की अलग से जांच शुरू की और दुरई की 40.34 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क कर लिया। इन संपत्तियों में चेन्नई और मदुरै स्थित 25 ज़मीन के टुकड़े, इमारतें और बैंक में सावधि जमा (FDs) शामिल हैं।
शुक्रवार (13 जून) को मदुरै की सीबीआई कोर्ट में सुनवाई के दौरान दुरई दयानिधि की कानूनी टीम ने अदालत में याचिका दायर की जिसमें दावा किया गया कि दुरई मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं और उन्हें मामले से बरी किया जाए। हालांकि, ईडी के वकीलों ने इसका विरोध करते हुए अदालत में जोर दिया कि आरोप इतने गंभीर हैं कि दुरई की व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य है। जज ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले की शीघ्र अगली सुनवाई तय करने का आदेश दिया है।
यह मामला राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील है क्योंकि दुरई दयानिधि, डीएमके सुप्रीमो एम. करुणानिधि के पोते और एक प्रभावशाली परिवार के सदस्य हैं। ईडी की यह कार्रवाई आगामी चुनावों से पहले डीएमके नेतृत्व के लिए भी एक बड़ी असहज स्थिति पैदा कर सकती है। मामले की अगली सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
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