महाराष्ट्र में हाल ही में संपन्न हुए मानसून सत्र के दौरान विधानसभा ने ‘महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024’ को पारित कर दिया है। इस कानून का उद्देश्य वामपंथी उग्रवादियों, विशेष रूप से शहरी नक्सलवाद और निष्क्रिय उग्रवाद की गतिविधियों को रोकना है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ शब्दों में कहा है कि यह कानून सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ नहीं है, लेकिन जो लोग शहरी नक्सल जैसी गतिविधियों में शामिल होंगे, उन्हें कानून का सामना करना पड़ेगा।
शनिवार (3 अगस्त) को पत्रकारों से बातचीत करते हुए फडणवीस ने स्पष्ट किया, “यह कानून प्रदर्शन करने वालों या सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ नहीं है। लेकिन अगर कोई शहरी नक्सल जैसा व्यवहार करता है, तो उसे गिरफ्तार किया जाएगा।” यह बयान तब आया जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने चुनौती दी थी कि मुख्यमंत्री अगर हिम्मत है तो नए कानून के तहत उनके कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करें।
इस कानून में कड़े प्रावधान शामिल हैं, जिनमें भारी जुर्माना और अधिकतम सात साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। हालांकि, इस विधेयक की विपक्षी दलों और नागरिक समाज संगठनों ने तीखी आलोचना की है। उनका आरोप है कि इस कानून का इस्तेमाल असहमति और लोकतांत्रिक विरोध को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की आड़ में कुचलने के लिए किया जा सकता है।
राज ठाकरे द्वारा यह आरोप लगाए जाने पर कि मुख्यमंत्री बाहरी लोगों को हिंदी सिखाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन मराठी को लेकर नरमी बरती जा रही है, इस पर फडणवीस ने कहा,“महाराष्ट्र में मराठी अनिवार्य है। लेकिन इसके साथ एक अन्य भारतीय भाषा भी सीखना चाहिए। मैं अंग्रेजी के लिए रेड कार्पेट बिछाने के खिलाफ हूं, भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।”
यह विधेयक ऐसे समय में पारित हुआ है जब राज्य में भाषाई अस्मिता, राजनीतिक विरोध और कानून-व्यवस्था को लेकर बहस जोरों पर है। एक तरफ राज्य सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम हिस्सा बता रही है, तो दूसरी ओर आलोचक इसे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा मान रहे हैं।
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