कौन हैं मनोज जारांगे पाटिल?: जालना जिले से शुरू हुए इस आंदोलन के केंद्र में रहे मनोज जारांगे मूल रूप से बीड जिले के रहने वाले हैं। उनका पैतृक गांव गेवराई तालुक में मथोरी है। शाहगढ़ उनका मायका है| वह पिछले 12-15 साल से शाहगढ़ में रह रहे हैं। मथोरी गांव का यह छोटी जोत का किसान है| मराठा आंदोलन की शुरुआत के बाद से, छोटे और बड़े आंदोलन में भाग लेने वाले, अगर वे इस अवसर पर नेतृत्व कर सकते थे, तो इस बात की कोई संभावना नहीं थी कि इंटरवली आंदोलन से पहले भाषण देने वाले जारांगे के पीछे एक बड़ा समर्थन खड़ा होगा। 12वीं तक पढ़ाई करने वाले जारांगे ने 2015 से गांवों में विरोध प्रदर्शन के लिए कई तरह के विरोध प्रदर्शन किए| पिछले कुछ महीनों में भी कई गांवों में अनशन हुआ| उनके आंदोलन में उस गांव के लोगों ने भाग लिया|
हाल के दिनों में आरक्षण आंदोलनों में युवतियों और युवतियों की भागीदारी भी बढ़ रही थी। उसके कई कारण| वे भी मराठवाड़ा में सूखे जैसे हालात में दबे हुए हैं। कपास और सोयाबीन उगाने वाले किसानों को उनकी फसलों के दाम नहीं मिलते। पढ़े-लिखे बच्चे शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं में लगे हैं या गांव में ही खेती में नए प्रयोग कर रहे हैं। लेकिन इन प्रयासों को न तो प्रतिष्ठा मिलती है और न ही अधिक सफलता। इसलिए हर गांव में अविवाहित युवाओं की बड़ी संख्या है| इन सभी बच्चों का यह गहरा विश्वास है कि उनकी समस्याओं का समाधान केवल आरक्षण से ही हो सकता है। जारांगे के विरोध के लिए भीड़ जमा हो गई|
लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले वोटों के ध्रुवीकरण का जोड़-घटाव फिर शुरू हो गया है, जारांगे सुर्खियों में हैं। जारांगे आरक्षण के मुद्दे पर गांव-गांव जाकर काम करने वाले कई कार्यकर्ताओं में से एक हैं,लेकिन इस बार उनकी आवाज हुक्मरानों तक पहुंचती दिख रही है|
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