मोदी विरोध में विपक्षी नेता राष्ट्रदोही कृत्य करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। घर-घर तिरंगा अभियान का विरोध कर रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की आलोचना करते हुए भाजपा ने इसे देशद्रोह की संज्ञा दी है। प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने शुक्रवार को कहा कि जब पूरे देश के लोग आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर जश्न मना रहे हैं, इस अवसर पर कुछ दलों की राष्ट्रीय नफरत देश के सामने आ गई है। उपाध्ये ने कहा कि ‘हर घर तिरंगा’ एक राजनीतिक दल का कार्यक्रम नहीं है, देश के करोड़ों लोगों की सहभागिता के कारण यह देशभक्ति का त्योहार बन गया है।
भाजपा नेता ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव देश के प्रत्येक नागरिक के लिए गर्व का विषय है। पूरा देश इस अवसर को मनाने के लिए कमर कस रहा है, पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने इस अवसर के खिलाफ केवल राजनीतिक क्षुद्रता के कारण एक स्टैंड लिया है। इस पार्टी के अध्यक्ष, जो मुश्किल से साढ़े तीन जिलों में मौजूद हैं, जो हमेशा राष्ट्रीय हित के किसी भी अभियान को खराब करते हैं, अपने पालतू तोतों के मुंह से राष्ट्रीय नफरत फैलाते हैं। इस समय पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाए जा रहे राष्ट्रीय पर्व हर घर तिरंगा अभियान का विरोध कर एनसीपी ने खुलेआम अपनी इसी प्रवृत्ति का प्रदर्शन किया है। इस तरह के राष्ट्रीय समारोहों का विरोध करने से देश में राष्ट्र विरोधी राजनीति के मुखौटे स्वत: ही बेनकाब हो गए हैं।
उपाध्ये ने कहा कि एनसीपी के नेताओं और प्रवक्ताओं ने नवाब मलिक का समर्थन किया, जो राष्ट्र विरोधी आतंकवादी दाऊद से जुड़े थे, उनकी गिरफ्तारी के बावजूद उनका मंत्री पद बरकरार रखा, आतंकवादी इशरत जहां के समर्थन के लिए धन जुटाया और उसे देशभक्त बताने की कोशिश की। ऐसे लोग ही अब देश के स्वतंत्रता समारोह का विरोध कर रहे हैं। राष्ट्रीय ध्वज फहराने के अभियान को एक अपव्यय बता रहे हैं।
उपाध्ये ने यह भी आरोप लगाया कि राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने हमेशा चुप रहकर अपनी पार्टी की ऐसी भूमिका का समर्थन किया है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अब लोगों को पता चल गया है कि जीतेंद्र आव्हाड, अमोल मिटकरी, छगन भुजबल जैसे लोगों के मुंह से वास्तव में शरद पवार बोल रहे हैं। ऐसी राष्ट्र विरोधी मानसिकता को जनता का समर्थन नहीं मिलेगा। उपाध्ये ने यह भी मांग की कि देश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वाले मिटकरी के खिलाफ और उस बयान पर चुप रहकर सहमति देने वाले नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
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