ओडिशा: 444 लोगों की हिरासत पर बंगाल की सियासत गरमाई!

'बांग्लादेशी या बंगाली प्रवासी मजदूर?'

ओडिशा: 444 लोगों की हिरासत पर बंगाल की सियासत गरमाई!

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ओडिशा सरकार द्वारा झारसुगुड़ा जिले में 444 संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों को हिरासत में लिए जाने के बाद बंगाल की राजनीति में तूफान मच गया है। इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच तीखी टकराहट शुरू हो गई है। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि हिरासत में लिए गए अधिकतर लोग बंगाली भाषी प्रवासी मजदूर हैं, जो पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों से आए थे। मामला अब कोलकाता हाईकोर्ट तक पहुंच गया है, जिसने ओडिशा सरकार से सख्त सवाल पूछे हैं।

ओडिशा सरकार ने यह कार्रवाई कथित तौर पर अवैध घुसपैठियों के खिलाफ एक विशेष अभियान के तहत की थी। ओडिशा पुलिस के मुताबिक, जिन लोगों को हिरासत में लिया गया है, वे वैध निवास या नागरिकता दस्तावेज दिखाने में असफल रहे। नॉर्दर्न रेंज, संबलपुर के आईजी हिमांशु लाल ने ट्वीट कर कहा, “यह प्रक्रिया किसी समुदाय या क्षेत्र को निशाना बनाने की नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने की है।”

तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि हिरासत में लिए गए लोगों में से 200 से अधिक प्रवासी मजदूर बंगाल के नदिया, मुर्शिदाबाद, मालदा, बीरभूम, पूर्व बर्दवान और दक्षिण 24 परगना जिलों से थे। टीएमसी के राज्यसभा सांसद समीरुल इस्लाम ने कहा, “क्या उनकी गलती सिर्फ इतनी है कि वे बंगाली बोलते हैं? नरेंद्र मोदी और अमित शाह को इन गरीब बंगालियों से क्या दुश्मनी है?”

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने तो यहां तक दावा किया कि हिरासत में लिए गए 23 मजदूर उनके निर्वाचन क्षेत्र से हैं। उन्होंने ओडिशा की नवगठित सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “नवीन पटनायक के शासनकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ। अगर बंगाली पर्यटक ओडिशा आना बंद कर दें, तो राज्य की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।” महुआ मोइत्रा ने एक वीडियो भी पोस्ट किया जिसमें एक व्यक्ति दावा करता है कि वे भारतीय नागरिक हैं, बांग्लादेशी नहीं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि दो मजदूर सिर्फ इसलिए अब तक हिरासत में हैं क्योंकि उनके फोन में बांग्लादेशी नंबर सेव थे।

बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने महुआ मोइत्रा को “लाउडमाउथ” कहकर हमला बोला और आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने दावा किया कि “444 में से 335 के पास फर्जी दस्तावेज थे, जो पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार द्वारा जारी किए गए थे।”

कोलकाता हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ओडिशा सरकार से पूछा, “प्रवासी मजदूर अब कहां हैं? किस आधार पर उन्हें हिरासत में लिया गया? उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है?” अदालत ने बंगाल और ओडिशा के मुख्य सचिवों को मिलकर स्थिति का समाधान करने और मजदूरों की रिहाई सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। यह मामला तब और तूल पकड़ गया जब एक व्यक्ति ने याचिका दाखिल की कि उसका बेटा, जो काम की तलाश में ओडिशा गया था, भी हिरासत में है।

इस मुद्दे ने न केवल क्षेत्रीय राजनीति को गर्मा दिया है, बल्कि केंद्र-राज्य और अंतरराज्यीय संबंधों में भी नया तनाव पैदा कर दिया है। अब देखना होगा कि अदालत की निगरानी में यह विवाद किस दिशा में जाता है।

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