भारतीय सेना के ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान ने प्रभावित आतंकवादी ठिकानों को फिर सक्रिय करने के लिए व्यापक कदम उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के संचालन सुदृढ़ करने के उद्देश्य से पाकिस्तानी सेना ने अब इन समूहों के प्रशिक्षण और सुरक्षा का प्रत्यक्ष नियंत्रण लेना शुरू कर दिया है। उच्च रैंकिंग अधिकारियों को प्रशिक्षण शिविरों का नेतृत्व सौंपा गया है और इन शिविरों पर सेना की सीधी निगरानी रहेगी।
खुफिया सहयोग के लिए आईएसआई तकनीकी सहायता उपलब्ध करा रही है तथा इन समूहों को आधुनिक हथियार और ड्रोन जैसी उच्च तकनीक मुहैया कराई जा रही है।
पारंपरिक हथियारों की जगह उन्नत प्रणालियाँ और डिजिटल युद्ध उपकरणों के इस्तेमाल की योजना भी सामने आई है। इसका मकसद इन समूहों को भारत पर सीधे वार करने में सक्षम बनाना बताया जा रहा है।
पाकिस्तान के अंदरूनी दबाव और रणनीतिक हित भी इस बदलाव के पीछे का कारण हैं। बलूचिस्तान में बीएलए और टीटीपी जैसी चुनौतियों के कारण पाक सेना चाहती है कि उसके विदेशी और स्थानीय हित सुरक्षित रहें और इसके लिए आतंकी समूहों को भारत-लक्ष्यी क्षमता से लैस किया जा रहा है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) की सुरक्षा और अमेरिका के साथ हालिया समझौते भी पाकिस्तान पर सुरक्षा सुनिश्चित करने का दबाव बढ़ा रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आईएसआई सालाना बड़े वित्तीय निवेश की योजना बना रही है और खाड़ी देशों से चंदा भी जुटाया जा रहा है। पाकिस्तान की यह रणनीति क्षेत्रीय तनाव को लंबी अवधि तक बढ़ा सकती है और भविष्य में सुरक्षा चुनौतियां अधिक जटिल होने का संकेत देती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस परिस्थितियों में क्षेत्रीय स्थिरता और सीमा सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। भारत को सतर्क रहने, सीमा निगरानी बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय कूटनीतिक दबाव बनाने की आवश्यकता है। अतिरिक्त सतर्कता।



