32 C
Mumbai
Monday, December 8, 2025
होमधर्म संस्कृतिसंसद में 'वंदे मातरम्' पर होगी बहस, पहले पीएम मोदी और आखिर...

संसद में ‘वंदे मातरम्’ पर होगी बहस, पहले पीएम मोदी और आखिर में राजनाथ सिंह उधेड़ेंगे बखिया

Google News Follow

Related

भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर संसद में विशेष बहस होने जा रही है। यह बहस एक बार फिर इसके इतिहास, उपयोग और प्रतीकात्मकता को लेकर पुराने जख्म ताज़ा करने वाली है। लोकसभा में सोमवार(8 दिसंबर) को होने वाली पूरे दिन की चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे और समापन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे, जबकि राज्यसभा में अगले दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चर्चा का नेतृत्व करेंगे।

यह बहस राजनीतिक दलों के बीच टकराव होगी, और इसकी पृष्ठभूमि में बहस उस गीत पर केंद्रित होगी जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के साहित्य से शुरू होकर स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रीय पुकार का रूप ले लिया और जिसकी गूंज आज भी भारत के राष्ट्रवादी विचार का केंद्र बिंदु है।

बहस के केंद्र में इस गीत की वह ऐतिहासिक यात्रा है जो बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के साहित्यिक लेखन में जन्मे इस गीत को आनंदमठ के प्रकाशन से स्वदेशी आंदोलन के नारों, कांग्रेस अधिवेशनों और ब्रिटिश दमन तक ले गई। बाद में 1937 में कांग्रेस कार्यसमिति ने केवल पहले दो पदों को सार्वजनिक उपयोग के लिए रखने का निर्णय किया, यह कहते हुए कि इन्हीं पंक्तियों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलन था और आगे के पदों में धार्मिक प्रतीकात्मकता ऐसी थी जिसे मुस्लिम समुदाय स्वीकार नहीं कर पाते थे।

संविधान सभा ने 1950 में जन गण मन को राष्ट्रगान घोषित करते हुए कहा था, कि वंदे मातरम् को राष्ट्रीय सम्मान और दर्जा प्राप्त रहेगा।

गीत के इतिहास पर नए सिरे से बहस और भी तेज हो रही है जब प्रधानमंत्री मोदी ने 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने 1937 के फैजाबाद अधिवेशन में गीत के महत्वपूर्ण पदों को हटा दिया और यह कदम विभाजन के बीज बोने जैसा था। मोदी ने कहा कि मूल रचना के विभाजन से उसके भाव कमजोर हुए। हालांकि  इसके जवाब में कांग्रेस कह रही है कि यह फैसला महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, अबुल कलाम आज़ाद और सरोजिनी नायडू जैसे नेताओं वाली कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से लिया था।

पार्टी ने गांधी के संकलित साहित्य का हवाला देकर कहा कि यह कदम संवेदनशीलता के साथ लिया गया था, क्योंकि केवल पहले दो पद ही व्यापक रूप से उपयोग में थे और अन्य पदों में देवी-प्रतीक आधारित कल्पना थी जिसका मुस्लिम   विरोध करते थे। कांग्रेस ने यह भी याद दिलाया कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1896 के कांग्रेस अधिवेशन में इसे गाया था, और पार्टी का आग्रह था कि राष्ट्रीय प्रतीक किसी को अलग-थलग न करें। फ़िलहाल कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री पर इतिहास का उपयोग कर शासन के मुद्दों बेरोज़गारी, असमानता और विदेश नीति से ध्यान हटाने का आरोप लगाया।

ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, श्री अरविंद ने 1907 में बंदे मातरम् पत्र में लिखा था कि बंकिमचंद्र ने यह गीत लगभग 1875 में रचा। 1881 में बंगदर्शन में आनंदमठ के धारावाहिक प्रकाशन के साथ यह व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचा। उपन्यास में संतानों के संघर्ष के माध्यम से भारत माता की तीन छवियों जो थी, जो है और जो होगी का चित्रण किया गया था। अरविंद इसे देशभक्ति का धर्म मानते थे, जबकि बाद के आलोचक कहते रहे कि आगे के पदों में देवी-प्रतीक आधारित भाषा सभी समुदायों को (खासकर मुस्लिम समुदाय)समाहित नहीं करती।

बीसवीं सदी की शुरुआत तक “वंदे मातरम्” स्वदेशी आंदोलन का केंद्रीय नारा बन चुका था। 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलनों में जुलूसों और सभाओं में इसी पुकार की गूंज थी। 1906 के बरिसाल जुलूस में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के 10,000 से अधिक लोग एक साथ इस नारे के साथ आगे बढ़े। ब्रिटिश शासन ने इस पर रोक लगाने की कोशिश की, लेकिन गीत का प्रसार जारी रहा। 1907 में मेडम भीकाजी कामा द्वारा स्टटगार्ट में प्रदर्शित प्रथम विदेशी तिरंगे पर भी ‘वंदे मातरम्’ अंकित था।

1930 के दशक तक धार्मिक बिंबों को लेकर आपत्तियाँ सामने आने लगी थीं, जिसके चलते 1937 का निर्णय लिया गया।वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा इसे सभ्यतागत विरासत का प्रतीक बताती है, जबकि कांग्रेस इसे स्वतंत्रता आंदोलन की सामूहिक धरोहर बताते हुए कहती है कि भाजपा इतिहास को राजनीतिक संघर्ष के लिए उपयोग कर रही है।

उधर, जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा है कि राष्ट्रीय उपयोग के लिए केवल पहले दो पद ही स्वीकार्य हैं, क्योंकि आगे के पदों में भारत माता को देवी दुर्गा के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो इस्लामी आस्था के अनुरूप नहीं है। उनके अनुसार आगे के पदों में शिर्क अर्थात बहुदेववाद का तत्व है, जिसे मुसलमान नहीं दोहरा सकते। इस तरह गीत का 150वाँ वर्ष वह अवसर बन गया है जब इसका इतिहास, राजनीति, सांस्कृतिक संदर्भ और धार्मिक विमर्श, सब एक साथ राष्ट्रीय बहस के केंद्र में लौट आए हैं।

यह भी पढ़ें:

रक्षा मंत्री ने किया BRO की 125 सामरिक परियोजनाओं का रिकॉर्ड उद्घाटन, सीमा क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को बड़ी मजबूती

300 R-37M मिसाइलें खरीदने की तैयारी में भारत; SU-30MKI को मिलेगी जबरदस्त बढ़त

JD वांस के इमिग्रेशन बयान पर विवाद, आलोचकों ने कहा—“पहले अपनी पत्नी उषा को ही वापस भारत भेजो”

मलयालम अभिनेता दिलीप गैंगरेप केस से बरी!

National Stock Exchange

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Star Housing Finance Limited

हमें फॉलो करें

151,706फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
284,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें