प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (14 अप्रैल) को अपने एक दिवसीय हरियाणा दौरे के दौरान हिसार हवाई अड्डे का उद्घाटन किया और हिसार से अयोध्या के लिए सीधी उड़ान को हरी झंडी दिखाई। इस अवसर पर उन्होंने जहां एक ओर वक्फ कानून में संशोधन को लेकर केंद्र सरकार की नीति का विस्तार से उल्लेख किया, वहीं कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला और डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ “ऐतिहासिक अन्याय” का आरोप लगाया।
प्रधानमंत्री मोदी ने वक्फ से जुड़ी जमीनों को लेकर पूर्ववर्ती सरकारों पर गहरी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा,
“वक्फ के नाम पर लाखों हेक्टेयर जमीन पूरे देश में है। इस जमीन से गरीबों का, बेसहारा महिलाओं-बच्चों का भला होना चाहिए था। अगर ईमानदारी से इसका उपयोग हुआ होता, तो मुसलमानों को साइकिल के पंचर बनाने की जरूरत नहीं होती। इससे सिर्फ भू-माफिया को ही फायदा हुआ। ये माफिया इस कानून के जरिए गरीबों की जमीन लूट रहे थे।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने इस दिशा में साहसिक कदम उठाते हुए वक्फ कानून में बदलाव किया है। उन्होंने खुलासा किया कि सैकड़ों मुस्लिम विधवा महिलाओं ने सरकार को पत्र लिखकर वक्फ की ज़मीनों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ शिकायतें की थीं और कानून में संशोधन की मांग की थी।
“अब आदिवासियों की जमीन को वक्फ बोर्ड छू भी नहीं सकता”
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया, “हमने बहुत बड़ा काम किया है। अब नए वक्फ कानून के तहत किसी भी आदिवासी की जमीन को, हिंदुस्तान के किसी भी कोने में, वक्फ बोर्ड हाथ भी नहीं लगा पाएगा। नए प्रावधान वक्फ की पवित्र भावना का सम्मान करते हुए बनाए गए हैं।” उन्होंने कहा कि यह बदलाव आस्था की आड़ में लूट को रोकने और असली ज़रूरतमंदों तक लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है।
अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “हमें ये भूलना नहीं चाहिए कि कांग्रेस ने बाबा साहेब के साथ क्या किया। जब तक बाबा साहेब जीवित थे, कांग्रेस ने उन्हें अपमानित किया। दो-दो बार उन्हें चुनाव हरवाया। कांग्रेस ने उनकी याद तक मिटाने की कोशिश की। कांग्रेस ने बाबा साहेब के विचारों को भी हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहा।” मोदी ने आरोप लगाया कि डॉ. अंबेडकर भारत के संविधान के संरक्षक थे, जबकि कांग्रेस अब संविधान की भक्षक बन चुकी है।
प्रधानमंत्री के इस बयान को वक्फ संशोधन विधेयक 2024 को लेकर जारी बहस के बीच एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, जहां सरकार इस कानून को धार्मिक आस्था और सामाजिक न्याय दोनों का संतुलन साधने वाला कदम बता रही है।
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