राजनीति में बयानबाज़ी का स्तर जब हकीकत से फिसलकर एजेंडा बन जाए, तो सवाल उठना लाज़मी है। ऐसा ही कुछ हुआ है पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी को लेकर, जिनके बचाव में शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत कूद पड़े। लेकिन सवाल यह है — क्या यह बचाव निष्पक्षता की मिसाल है या एक सटीक राजनैतिक पैंतरा?
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बयान के बाद अचानक कुरैशी साहब को लेकर राजनीतिक धरातल पर जैसे भूचाल सा आ गया। लेकिन राउत ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। अपने पुराने साथी भाजपा पर हमला करते हुए राउत बोले, “कुरैशी बेहतरीन चुनाव आयुक्त थे… भले ही वह मुसलमान थे, हमने तब भी कहा कि वह निष्पक्ष थे।” इस कथन से संजय राऊत अपने नए वोट-बैंक को आंख मार कर इशारा करते दीखते है।
संजय राऊत ने पूछा “अगर कोई चीफ जस्टिस मुसलमान है या चुनाव आयुक्त मुसलमान है, तो यह कौन सी भाषा है? यह कौन सी सोच है?” उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसे बयान देश को तोड़ने वाली मानसिकता के परिचायक हैं और “ऐसे लोग इस देश में रहने के लायक नहीं हैं।”
राउत ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में भाजपा की कथित ‘वॉशिंग मशीन राजनीति’ पर तंज कसते हुए कहा, “अजित पवार को पार्टी में लिया, एकनाथ शिंदे को लिया, अशोक चव्हाण को लिया, ऐसे बहुत से लोग हैं। इन्होंने कितने भ्रष्टाचारियों को अपनी वॉशिंग मशीन में डाल दिया है, ये बातें जनता को भी बताइए, ताकि सच्चाई सामने आए।”
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भाजपा पर विपक्ष अक्सर आरोप लगाता रहा है कि जांच एजेंसियों की फाइलें ‘वॉशिंग मशीन’ में डालते ही साफ हो जाती हैं। एस.वाई. कुरैशी की — जिनका कार्यकाल अक्सर विवादों से घिरा रहा, जहां वोटर कार्ड और चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठे — उनका नाम जब मुस्लिम पहचान के संदर्भ में बार-बार उठे, तो यह खुद उनकी निष्पक्षता पर भी एक प्रश्नचिह्न बन जाता है। सवाल है की अगर वह एक ‘बेहतरीन चुनाव आयुक्त’ थे, तो उन्हें ऐसे राजनीतिक समर्थन की ज़रूरत ही क्यों पड़ रही है?
इसी के साथ संजय राऊत ने राहुल गांधी द्वारा बोस्टन में चुनाव आयोग पर लगाए आरोपों का भी एक प्रकार से समर्थन किया है। उन्होंने कहा, “उन्होंने कोई मंगल या चंद्रमा पर बात नहीं की, उन्होंने धरती पर सच बोला है। सच बोलने के लिए किसी खास जगह की जरूरत नहीं होती।”
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