छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) और एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने मंगलवार (14 अक्टूबर) को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पूर्व डिप्टी चीफ सेक्रेटरी सौम्या चौरसिया के खिलाफ आरोपपत्र (chargesheet) दाखिल किया है। इस मामले में उन पर अपनी आय से 19 गुना अधिक यानी लगभग ₹47 करोड़ की संपत्ति इकट्ठा करने का गंभीर आरोप है।
अधिकारियों के मुताबिक, यह राज्य के इतिहास में किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा ‘अवैध संपत्ति’ मामला है। एसीबी-ईओडब्ल्यू की 8,000 पन्नों की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सौम्या चौरसिया ने अपनी 17 साल की सरकारी सेवा के दौरान मात्र ₹2.52 करोड़ की वैध आय अर्जित की, लेकिन उन्होंने लगभग ₹46.96 करोड़ की संपत्तियां जुटाईं, जो 1,872% अधिक है।
जांच में पाया गया कि चौरसिया ने रायपुर, दुर्ग और कोरबा जिलों में कम से कम 45 संपत्तियां खरीदीं। इन संपत्तियों को उन्होंने अपनी मां, पति, चचेरे भाई और बहन के ससुर के नाम पर खरीदा ताकि वास्तविक स्वामित्व छिपाया जा सके। सबसे अधिक खरीदारी 2019 से 2022 के बीच हुई, जब वह तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) में डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर थीं।
ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया, “सौम्या चौरसिया और उनके परिवार की कुल वैध आय ₹2.52 करोड़ थी, जबकि उन्होंने लगभग ₹49.69 करोड़ अवैध माध्यमों से अर्जित किए।” यह रकम मुख्यतः बेेनामी निवेशों के जरिए भूमि, भवन और अन्य संपत्तियों में लगाई गई।
सौम्या चौरसिया 2008 बैच की छत्तीसगढ़ राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारी हैं। उन्हें इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दिसंबर 2022 में ₹540 करोड़ के कोल लेवी घोटाले में गिरफ्तार किया था। उन्हें इस वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी।
भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद एसीबी-ईओडब्ल्यू ने चौरसिया के खिलाफ तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए — कोल लेवी केस, डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (DMF) फंड के दुरुपयोग और अवैध संपत्ति (disproportionate assets) का मामला।
ब्यूरो के अनुसार, चौरसिया ने 2005 में अकाउंट्स ऑफिसर के रूप में करियर शुरू किया, बाद में बिलासपुर में डिप्टी कलेक्टर बनीं। 2019 में उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय में पदोन्नति मिली, जहां से उन्होंने कथित रूप से अपने प्रभाव का उपयोग कर भारी अवैध संपत्ति अर्जित की। यह मामला अब छत्तीसगढ़ की राजनीति और प्रशासनिक तंत्र में एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जिससे कांग्रेस शासनकाल की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
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