नागरिकता जांच पर सवाल: सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा, “आप मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का कार्यक्षेत्र है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर नागरिकता की जांच करनी थी तो वह पहले करनी चाहिए थी, अब इसमें देरी हो चुकी है।
समस्या प्रक्रिया से नहीं, समय से: जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि कोर्ट को पुनरीक्षण की प्रक्रिया से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इस प्रक्रिया के समय को लेकर आपत्ति है, क्योंकि यह आगामी चुनावों से ठीक पहले हो रहा है।
गहन बनाम संक्षिप्त पुनरीक्षण: याचिकाकर्ता के वकील गोपाल एस ने बताया कि यह विशेष गहन पुनरीक्षण है, जिसमें संपूर्ण मतदाता सूची की नए सिरे से जांच होती है। इसके तहत बिहार के सभी 7.9 करोड़ मतदाताओं को प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि चुनाव आयोग को ऐसा पुनरीक्षण कब और किस परिस्थिति में करना चाहिए?
आधार कार्ड पर बहस: चुनाव आयोग ने बताया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए उसे अनिवार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया गया है। इस पर न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि अगर आधार मूल अधिनियम के तहत मान्य पहचान पत्र है तो उसे बाहर करना कानून के विरुद्ध माना जा सकता है।
चुनाव आयोग का पक्ष: चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि वह संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत नागरिकता की पुष्टि करना अनिवार्य मानता है और यह पुनरीक्षण 2003 के बाद पहली बार किया जा रहा है। आयोग ने यह भी कहा कि प्रक्रिया में पत्रकारों, जजों और कलाकारों को पहले से पहचाना गया समूह मानते हुए शामिल किया गया है।
सुप्रीम टिप्पणी: न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, “हमें गली में नहीं, हाईवे पर रहना चाहिए। हमें मूल प्रश्न से नहीं भटकना चाहिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि नागरिकता की पुष्टि अर्ध-न्यायिक जांच के बिना नहीं की जा सकती।
राजनीतिक दलों की आपत्तियां: इस पुनरीक्षण अभियान के खिलाफ कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट), तृणमूल कांग्रेस, झामुमो, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) सहित कई दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं। याचिकाकर्ताओं में मनोज झा, महुआ मोइत्रा, केसी वेणुगोपाल, सुप्रिया सुले, डी. राजा, अरविंद सावंत, सरफराज अहमद और दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हैं।
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