सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। अदालत ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दर्ज मानहानि मामले में अतिरिक्त गवाहों को बुलाने की अनुमति मांगी थी। इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट भी उनकी यह मांग ठुकरा चुका था। सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने पर पाटकर के वकील ने याचिका वापस ले ली।
यह मामला करीब 25 साल पुराना है। साल 2001 में जब विनय कुमार सक्सेना ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे, तब मेधा पाटकर ने उन पर गंभीर आरोप लगाए थे। इसके बाद सक्सेना ने उनके खिलाफ दो मानहानि के मुकदमे दर्ज कराए। एक मुकदमा टीवी इंटरव्यू में दिए गए बयानों को लेकर था और दूसरा प्रेस बयान से जुड़ा था।
ट्रायल कोर्ट ने 1 जुलाई 2024 को पाटकर को दोषी ठहराया था और उन्हें 5 महीने की साधारण कैद तथा 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। हालांकि, इसके बाद सेशन कोर्ट ने अच्छे आचरण के आधार पर उन्हें 25 हजार रुपये के प्रोबेशन बॉन्ड पर रिहा कर दिया, लेकिन 1 लाख रुपये का जुर्माना भरने की शर्त रखी।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को पाटकर को मिली सजा में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। हालांकि, अदालत ने उनकी कैद की सजा और प्रोबेशन आदेश रद्द कर दिए, लेकिन दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने साफ किया कि निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले में कोई बदलाव नहीं होगा।
मेधा पाटकर की मुश्किलें अब भी कम होती नहीं दिख रही हैं। हाईकोर्ट ने भी उनकी दोषसिद्धि कायम रखते हुए उन्हें केवल आंशिक राहत दी थी कि वे हर तीन महीने में ट्रायल कोर्ट में ऑनलाइन या वकील के माध्यम से पेश हो सकती हैं। इसका मतलब यह है कि अब मेधा पाटकर को इस लंबे चले मुकदमे में दोषसिद्ध अपराधी ही माना जाएगा, जबकि कानूनी लड़ाई फिलहाल जारी रहेगी।
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