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ट्रंप के सुरक्षा दस्तावेज़ में भारत इंडो-पैसिफिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी!

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2025 की नई अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति ने भारत को इंडो-पैसिफिक सुरक्षा, वैश्विक व्यापारिक स्थिरता और उभरती टेक-सप्लाई चेन में निर्णायक साझेदार के रूप में रेखांकित किया है। इस रणनीति दस्तावेज़ के अनुसार, वाशिंगटन आने वाले वर्षों में भारत के साथ वाणिज्यिक, रणनीतिक और तकनीकी सहयोग को और गहरा करेगा। दस्तावेज के अनुसार यह सहयोग क्वाड देशों के भीतर गहरा करना अमेरिका का लक्ष्य होगा।

रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका चाहता है कि भारत इंडो-पैसिफिक सुरक्षा में बड़ी और अधिक सक्रिय भूमिका निभाए। इंडो-पैसिफिक को वैश्विक GDP का लगभग आधा हिस्सा बनाने वाला क्षेत्र बताते हुए दस्तावेज़ कहता है कि आने वाली सदी के प्रमुख जिओपॉलिटिकल और आर्थिक संघर्ष इसी इलाके में आकार लेंगे। अमेरिकी रणनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखना और किसी एक देश के प्रभुत्व को रोकना अब अमेरिका साझा प्राथमिकता मानने लगा है और इसमें भारत की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है।

व्यापार, समुद्री सुरक्षा और क्वाड से आगे बढ़कर, रणनीति भारत के साथ रक्षा, उभरती तकनीक, महत्वपूर्ण खनिजों और सप्लाई-चेन सुरक्षा में भी व्यापक सहयोग का खाका पेश करती है। दस्तावेज़ यह भी लिखा है कि अमेरिका केवल भारत ही नहीं, बल्कि यूरोप, एशिया और अफ्रीका में सहयोगी राष्ट्रों के साथ मिलकर जबरन आर्थिक दबाव और एकतरफा प्रभुत्व वाली व्यापारिक प्रवृत्तियों का मुकाबला करना चाहता है, ताकि वैश्विक सप्लाई-चेन अधिक सुरक्षित और विविध हों।

विश्लेषकों के अनुसार, यह रणनीति पिछले फ्रेमवर्क्स से थोड़ा अलग टोन अपनाती है। भारत को अब भी केंद्रीय साझेदार माना गया है, लेकिन भाषा पहले की तुलना में कम रक्षा-केंद्रित और अधिक व्यापारिक पारस्परिकता, बोझ में साझेदारी और आर्थिक-सुरक्षा में तालमेल पर आधारित है। यह बदलाव दर्शाता है कि वाशिंगटन की प्राथमिकताएँ अब रणनीतिक रियलिजम और आर्थिक राष्ट्रवाद का मिश्रण हैं और अमेरिका फर्स्ट की रूपरेखा के भीतर वह भारत को वैश्विक टेक नेटवर्क, सुरक्षित सप्लाई-चेन और आर्थिक गठबंधनों में एक अनिवार्य स्तंभ के रूप में देख रहा है।

अमेरिका की यह नई रणनीति अंततः भारत को अपने व्यापक वैश्विक प्लेबूक में और गहराई से शामिल करती है, सिर्फ़ रक्षा सहयोग के तौर पर नहीं, बल्कि एक ऐसे साझेदार के रूप में जो इंडो-पैसिफिक सुरक्षा, व्यापारिक स्थिरता और उभरती तकनीकी ताकतों के संतुलन में निर्णायक योगदान दे सकता है।

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