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राबर्ट्सगंज लोकसभा का इतिहास; शिव, राम और नारायण के नाम को मिली विजयश्री!

यह जिला प्रदेश ही नहीं अपितु एशिया में ऊर्जा उत्पादन के लिए जाना जाता है| इसे देश की ऊर्जा की राजधानी भी कहा जाना जाता है|

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उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर जिले की पहचान विंध्याचल एवं गंगा की बाँहों में फैला विंध्यक्षेत्र के रूप में की जाती है| जंगलों और पहाड़ों से आच्छादित मिर्ज़ापुर जिले के दक्षिणी भाग को काटकर 4 मार्च 1989 को सोनभद्र जिले और जिला मुख्यालय के रूप में रॉबर्ट्सगंज का निर्माण किया गया था। यह जिला प्रदेश ही नहीं अपितु एशिया में ऊर्जा उत्पादन के लिए जाना जाता है| इसे देश की ऊर्जा की राजधानी भी कहा जाना जाता है|

बता दें सोनभद्र जिले का राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट का भी एक इतिहास है| उत्तर प्रदेश की इस सीट से शिव और नारायण नाम क्रमश: 18 और 12 विजयी हुए है, वही इस चुनाव में 9 बार केवल राम नाम वाले अपना पताका फहरा चुके हैं| सोनभद्र जिले की स्थापना 1989 में की गई थी। इसे मिर्जापुर जिले से अलग कर दिया गया था। औद्योगिक इतिहास के मामले में भी इसे प्रमुख जिला माना जाता है।

गौरतलब है कि राबर्ट्सगंज सोनभद्र जिले का मुख्यालय है|अब तक हुए राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पर जीत के उम्मीदवारों के नामों के संयोग का एक लंबा इतिहास रहा है|इस सीट से 18 में 12 बार शिव, राम और नारायण नाम रखने वाले उम्मीदवारों को जीत मिली| मजे की बात है कि 9 बार तो राम नाम वाले उम्मीदवारों ने अपने जीत परचम लहराया| राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट से चुने गए सांसदों के साथ एक अनूठा संयोग रहा है। 18 बार लोकसभा के चुनाव में 12 बार राम, शिव और नारायण नाम वाले उम्मीदवारों को जीत मिली है। इसमें भी अकेले 9 बार सिर्फ राम नाम की जय हुई।​

राबर्ट्सगंज सीट शुरू से ही सुरक्षित रही है। यहां पहले सांसद रूप नारायण चुने गए थे। वह लगातार दो बार जीते। वर्ष 1962 में हुए तीसरे चुनाव में रामस्वरूप को जीत मिली। इन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीत की हैट्रिक लगाई। आपातकाल के बाद साल 1977 में हुए आम चुनाव में यह सीट भारतीय लोकदल के खाते में चली गई। तब इस सीट पर शिव संपत राम निर्वाचित हुए। तीन साल बाद हुए अगले चुनाव में फिर से कांग्रेस ने जीत के साथ वापसी की और राम प्यारे पनिका सांसद बने।

पनिका दो बार सांसद चुने गए। इस दौरान प्रदेश में राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा तो भाजपा के सूबेदार प्रसाद सांसद चुने गए, मगर वह दो साल ही सांसद रह सके। वर्ष 2004 से लाल नाम वालों का प्रभाव रहा है। 2004 में बसपा से लालचंद कोल जीते तो मध्यावधि चुनाव में भाईलाल कोल को जीत मिली। इसके बाद 2009 में पकौड़ी लाल और 2014 में छोटेलाल खरवार सांसद चुने गए। वर्तमान में अपना दल- एस से पकौड़ी लाल सांसद हैं।

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