पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद अब राष्ट्रीय स्तर पर हलचल तेज हो गई है। शनिवार को राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष विजया रहाटकर और राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस ने जिले के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा किया और राहत शिविरों में रह रहे पीड़ितों से मुलाकात की।
रहाटकर ने कहा, इन परिवारों की व्यथा सुनकर मैं नि:शब्द रह गई हूं। इनकी आंखों में सिर्फ खौफ नहीं, टूटे हुए भरोसे की गहराई भी साफ नजर आती है।यह दौरा सिर्फ औपचारिकता नहीं था, बल्कि यह पीड़ितों को एक भरोसा दिलाने की कोशिश थी कि उन्हें भुलाया नहीं गया है।
विजया रहाटकर ने विशेष रूप से उन महिलाओं से मुलाकात की, जो हिंसा के दौरान अपने परिवार से बिछड़ गईं, जिनके घर जला दिए गए, और जिन्हें आज भी अपने बच्चों की सुरक्षा की चिंता सता रही है। एनसीडब्ल्यू ने केंद्र सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का वादा किया है, जिसमें महिलाओं के खिलाफ हुए कथित अत्याचारों और विस्थापन की पूरी जानकारी होगी।
राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस भी इस मौके पर भावुक दिखे। उन्होंने पीड़ितों से बातचीत करते हुए कहा कि राज्य सरकार यदि चाहती तो इस स्तर की हिंसा रोकी जा सकती थी। उन्होंने प्रशासन को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि हिंसा के बाद राहत के बजाय राजनीतिक बयानबाज़ी ज़्यादा हो रही है।
इस पूरे घटनाक्रम पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने कड़ी आपत्ति जताई है। पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने राज्यपाल और एनसीडब्ल्यू की यात्रा को “पूर्व नियोजित राजनीतिक साजिश” बताया। उनका कहना है कि यह सब केंद्र की शह पर बंगाल सरकार को बदनाम करने की कोशिश है।
हिंसा के दौरान तीन लोगों की मौत हुई, दर्जनों घायल हुए और सैकड़ों लोगों को अपना घर छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी। मालदा और झारखंड के पाकुड़ जिले में बनाए गए शिविरों में अभी भी कई परिवार बदहाली में जी रहे हैं। एनसीडब्ल्यू ने इन महिलाओं के लिए तत्काल चिकित्सा सुविधा, सुरक्षित आश्रय और कानूनी सहायता की सिफारिश की है।
सबसे गंभीर चिंता उन महिलाओं को लेकर है, जिन्हें हिंसा के दौरान छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। रहाटकर ने स्पष्ट किया कि आयोग इस मामले में जीरो टॉलरेंस नीति अपनाएगा और जल्द ही एक विशेष जांच समिति घटनास्थल पर भेजी जाएगी, जो तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करेगी।
इस पूरे विवाद ने यह भी उजागर किया है कि जब प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक खींचतान आमजन के जीवन पर भारी पड़ती है, तब सबसे ज़्यादा चोट उन पर होती है जिनकी आवाजें सबसे कम सुनी जाती हैं — महिलाएं, बच्चे और ग्रामीण गरीब। आयोग का यह दौरा उम्मीद जरूर जगाता है, लेकिन पीड़ितों को न्याय तभी मिलेगा जब राजनीति से ऊपर उठकर ठोस कार्रवाई की जाएगी।
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