सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को चुनावी बांड योजना को “असंवैधानिक” करार दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और संविधान का उल्लंघन करती है।सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला केंद्र सरकार की चुनावी बांड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया है। यह योजना 2017 में शुरू की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, सूचना के अधिकार के तहत वोटरों को यह जानने का हक़ है राजनीति दलों को कौन फंडिंग कर रहा है और यह पैसा कहां जाता है। राजनीति दलों के बारे में जानकारी मिलने पर मताधिकार करने में स्पष्ठता रहती है। कोर्ट ने कहा की राजनीति दलों द्वारा फंडिंग की जानकारी नहीं देना मकसद के विपरीत है। चुनावी बांड के जरिये राजनीतिक दलों को फंडिंग करना गलत भावना को जन्म देती है।
चुनावी बांड योजना काला धन पर अंकुश लगाने वाली एकमात्र योजना नहीं बल्कि कई विकल्प है। कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बांड को तल्काल बंद करने को कहा है। कोर्ट ने 15 दिन की वैधता वाले सभी चुनावी बांड को खरीदारों को वापस करने को कहा है। वहीं, इस बारे में सभी जानकारी मिलने पर केंद्रीय चुनाव आयोग राजनीति दलों को मिले दान को सार्वजनिक करेगा। कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को तुरंत चुनावी बांड जारी करना बंद करने को कहा है और 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सभी सभी जानकारी मुहैया कराने को कहा है।
चुनावी बांड योजना क्या है?
गौरतलब है कि, चुनावी बांड योजना की घोषणा पहली बार पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 के बजट में की थी। बाद में, इसे जनवरी 2018 में वित्त अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन पेश करके धन विधेयक के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के स्रोत के रूप में अधिसूचित किया गया था। चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए, केंद्र सरकार ने कंपनी अधिनियम, आयकर अधिनियम विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए), और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में कुछ संशोधन भी किया था।
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