शिवसेना पार्टी के नाम पर और इसके चुनाव निशान ‘धनुष बाण’ पर किसका हक है? ठाकरे गुट का या शिंदे गुट का? इससे जुड़े विवाद को लेकर शुक्रवार, 20 जनवरी को केंद्रीय चुनाव आयोग के सामने सुनवाई हुई। शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से कपिल सिब्बल और देवेंद्र कामत ने दलीलें पेश कीं। वहीं जवाब में एकनाथ शिंदे गुट से महेश जेठमलानी और मनिंदर सिंह ने दलीलें पेश कीं। दोनों पक्ष की दलीलें शुक्रवार को पूरी हो चुकी है। हालांकि चुनाव आयोग अब इस मुद्दे पर 30 जनवरी को सुनवाई करेगा। जबकि सोमवार को ठाकरे और शिंदे गुट से लिखित में जवाब देने को कहा गया है।
हालांकि कपिल सिब्बल ने अपनी पार्टी की तरफ से कोई नई बात कहने की बजाए अपनी पुरानी दलीलों को ही दुरुस्त तरीके से देने की कोशिश की। उन्होने कहा कि कुछ लोगों के अलग हो जाने से उसे एक अलग गुट की मान्यता नहीं दी जा सकती। शिंदे गुट कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है। उनका मनाना है कि प्रतिनिधि सभा और जिला प्रमुखों में शिंदे गुट को नहीं, बल्कि ठाकरे गुट को बहुमत है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मुद्दत बढ़ाए और संगठनात्मक फैसले लेने की उद्धव ठाकरे को इजाजत दी जाए।
वहीं शिंदे गुट के पक्ष में महेश जेठमलानी ने यह दलील दी कि चुनाव चिन्ह का फैसला करने का अधिकार चुनाव आयोग का है। यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का मामला नहीं है। इसलिए चुनाव चिन्ह के मामले में चुनाव आयोग लोकप्रतिनिधियों के बहुमत को देखते हुए शिंदे गुट को शिवसेना का चुनाव चिन्ह दे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में प्रतिनिधि सभा की अहमियत नहीं, लोकप्रतिनिधियों की अहमियत ज्यादा है। शिंदे गुट के पास विधायकों और सांसदों का बहुमत है।
बता दें कि चुनाव आयोग ने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि पार्टी प्रमुख के तौर पर उद्धव ठाकरे का जो कार्यकाल 23 जनवरी को खत्म हो जाएगा, अब सवाल यह उठता है कि संगठनात्मक चुनाव कराए बिना वे पार्टी प्रमुख के तौर पर कैसे बने रह सकते हैं? ठाकरे गुट का पक्ष रखते हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि ठाकरे गुट ही असली शिवसेना है।हालांकि केंद्रीय चुनाव आयोग ने दोनों गुटों की बहस को सुनने के बाद दोनों ही गुटों से लिखित जवाब देने के लिए सोमवार तक का समय दिया है।
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