नवरात्रि के नौ दिनों के बाद दशहरे का पर्व मनाया जाता है। जिसे अच्छाई पर बुराई का प्रतीक माना जाता है। भगवान राम ने रावण का वध जिस दिन किया, उसे दशहरे के रूप में मनाया जाने लगा। दशहरे के कई दिन पहले से ही जगह-जगह राम लीला और भगवान राम की कथाओं का मंचन होता है। भारत में हर साल रावण का पुतला जलाकर त्योहार मनाया जाता है। लेकिन भारत में एक जगह ऐसी भी है, जहां पर रावण को दानव समझकर उसकी चिता नहीं जलाई जाती। दशहरे के दिन पुतला जलाने की बजाय उसकी शोभायात्रा निकाली जाती है। तो चलिए जानें कौन सी है वो जगह।
दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित कोलार, जहां वर्षों से रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। यहां नवरात्रि के नौ दिनों में रावण की पूजा होती है। जिसमे भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं। जब पूरे देश में दशहरा मनाया जाता है। तो उसी दिन कोलार में फसल की पूजा होती है। इस मौके पर महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसे लंकेश्वर महोत्सव कहते हैं।
इस अवसर पर राणव की प्रतिमा को रथ पर रखकर शोभायात्रा निकाली जाती है। हालांकि इस दिन कोलार में भगवान शिव की पूजा होती है। क्योंकि रावण शिव का भक्त था इसलिए भगवान शिव के साथ रावण को भी लोग पूजते हैं। हालांकि रावण दहन के पीछे लोगों का यह मानना भी है कि जब पुतलों में आग लगाया जाता हैं तो फसल के जलने का डर रहता है। वहीं कई बार पूरी फसल ठीक से नहीं उगती। कर्नाटक के कोलार में रावण का बहुत बड़ा मंदिर है। इसके साथ ही कर्नाटक के मालवल्ली में भी रावण का मंदिर है।
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