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Friday, December 12, 2025
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“अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है”

सरसंघचालक मोहन भागवत ने वैश्विक समस्याओं पर दी भारतीय दृष्टिकोण से सीख

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नई दिल्ली स्थित आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में मंगलवार (22 जुलाई) को ‘विश्व की समस्याएं और भारतीयता’ विषय पर आयोजित 10वें अणुव्रत न्यास निधि व्याख्यान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि समस्याओं की नहीं, उनके उपायों की चर्चा होनी चाहिए, क्योंकि चर्चा मात्र से समाधान नहीं निकलता। भागवत ने कहा कि विश्व समस्याओं से घिरा हुआ है, पर समाधान के प्रयास सतही रहे हैं। उन्होंने कहा, “समस्याएं पुरानी हैं — दुख, संघर्ष, असुरक्षा — लेकिन हम अब भी मूल प्रश्नों से जूझ रहे हैं।”

भागवत ने विज्ञान के विकास से उपजी आधुनिक सुख-सुविधाओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि भले ही तकनीकी उन्नति से मनुष्य आगे बढ़ा है, लेकिन मानव दुःख आज भी उतना ही प्रबल है। उन्होंने याद दिलाया कि जब से वे पैदा हुए हैं (1950), तब से लेकर अब तक कोई ऐसा साल नहीं बीता जब दुनिया में कहीं न कहीं युद्ध न हुआ हो। उन्होंने कहा, “प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शांति की किताबें लिखी गईं, लेकिन आज फिर लोग सोच रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध कब होगा?”

मोहन भागवत ने भारतीय परंपरा और आयुर्वेद की ओर इशारा करते हुए कहा कि पहले त्रिफला जैसी औषधियां और घरेलू चिकित्सा आम आदमी तक पहुंची हुई थीं। “आज वही बातें जब बाबा रामदेव कहते हैं तो लौकी महंगी हो जाती है। यानी ज्ञान का प्रचार तो बढ़ा, पर श्रम और जीवन शैली में संतुलन खत्म हो गया।” उन्होंने आधुनिक जीवनशैली में परिश्रम की कमी, रोगों की बढ़ती संख्या और श्रम के अवमूल्यन को सामाजिक संकट बताया।

भागवत ने इतिहास के विभिन्न चरणों को छूते हुए बताया कि कैसे राज्य और धर्म दोनों ही समय के साथ शोषणकारी हो गए। उन्होंने कहा कि “पहले राजा लोगों को संगठित करता था, बाद में वही ज़ुल्मी बन गया। फिर साधु-संत आए, लेकिन धर्म और राज्य दोनों मिलकर जनता को लूटने लगे।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि पूंजीवाद की प्रतिक्रिया में साम्यवाद आया, लेकिन वहां भी सत्ता जिनके हाथ में गई, वही शोषक बन गए। “चाहे भगवान को मानने वाले हों या न मानने वाले, प्रयोग सब असफल रहे, सुख बढ़ा लेकिन दुःख मिटा नहीं।”

भागवत ने कहा कि आज के दौर में मनुष्य भय और असुरक्षा से घिरा हुआ है, यहां तक कि अपने ही घरों में भी लोग सुरक्षित महसूस नहीं करते। पुलिस और व्यवस्था के बावजूद समाज में सुरक्षा का भरोसा नहीं बन पाया है। उन्होंने कहा, “अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है। यही प्रतिस्पर्धा का नियम है – जिसकी लाठी उसकी भैंस।” उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जब तक भौतिकता ही जीवन का लक्ष्य रहेगा, तब तक समस्याएं बनी रहेंगी।

भागवत ने भारतीय दृष्टिकोण की तरफ इशारा करते हुए कहा कि प्राचीन परंपराएं और मूल्यों की ओर लौटना ही दुनिया के लिए मार्गदर्शक हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि “आज दुनिया में प्राचीन परंपराओं की बात करने वाले लोगों को कोई नहीं सुनता, लेकिन भारतीयता वह दृष्टि दे सकती है जो वास्तव में समाधानकारी है।” मोहन भागवत का भाषण आज के समय में गहरी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाने वाला था, जिसमें भारतीयता को विश्व समस्याओं का संभावित समाधान बताया गया।

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