नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) द्वारा इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में मुगल शासक अकबर और मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के नाम से “द ग्रेट” (महान) जैसी उपाधि हटाने की खबर पर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस कदम का अनेक संगठनों और राजनीतिक नेताओं ने समर्थन किया है, वहीं कई सवाल भी उठ रहे हैं।
शनिवार (22 नवंबर) को बोंगाईगांव में एक कार्यक्रम के दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “बहुत बढ़िया किया।” इसके बाद उन्होंने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “टीपू-इपु को मारो एकदम। जहाँ भेजना है, उधर ही भेज दो। समुंदर में फेंक दो।” सरमा ने कहा कि अगर NCERT ने वास्तव में यह बदलाव किया है, तो इसके लिए उनका आभार जताया जाना चाहिए।
#WATCH | Bongaigaon: On NCERT dropping 'Great' from Akbar, Tipu Sultan in textbooks, Assam CM Himanta Biswa Sarma says, 'Very well done… I have not seen whether they have done this. If they have done this, then many thanks to the NCERT from my side. 'Tipu-Ipu ko maro ekdum.… pic.twitter.com/zSR3t1Gce7
— ANI (@ANI) November 22, 2025
NCERT द्वारा पाठ्यपुस्तकों में ‘महान’ विशेषण हटाए जाने को समर्थकों ने एक सुधारात्मक कदम बताया है। दावा है कि इससे छात्रों को इन ऐतिहासिक व्यक्तियों का अधिक तथ्यात्मक और संतुलित चित्र मिलेगा, जिसमें उनके क्रूर अभियानों, धार्मिक उत्पीड़न और संघर्षों को भी समझने का अवसर होगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि यह परिवर्तन सकारात्मक है और इससे इतिहास का “पूर्ण चित्र” प्रस्तुत होता है। उन्होंने कहा कि बीते दशकों में इन शासकों का महिमामंडन किया गया, जबकि उनके द्वारा किए गए अत्याचारों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया गया।
विहिप के प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि अकबर और टीपू सुल्तान जैसे शासकों के बारे में ऐतिहासिक आख्यान समय के साथ विकृत हो गए। उन्होंने पूछा कि जब महाराणा प्रताप जैसे हिंदू वीरों ने अकबर से संघर्ष किया, तो अकबर को “महान” कैसे कहा गया? उन्होंने NCERT को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह कदम भारत की मिट्टी पर विदेशी आक्रांताओं के अनुचित महिमामंडन को सुधारने की दिशा में आवश्यक था।
यह परिवर्तन NCERT के व्यापक पाठ्यक्रम पुनर्गठन का हिस्सा है, जिसमें कई अध्यायों को हटाया या पुनर्संरचित किया जा रहा है। विशेषकर मध्यकालीन इतिहास के उन हिस्सों में परिवर्तन किए जा रहे हैं, जहाँ अतीत के शासकों के प्रति एकतरफा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता था। नई किताबों में जोर तथ्यों, ऐतिहासिक प्रसंगों और उनके प्रभावों पर दिया जा रहा है, ताकि छात्र इतिहास को महिमामंडन या उपाधि-आधारित व्याख्या के बजाय वास्तविक घटनाओं के आधार पर समझ सकें।
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