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Friday, September 20, 2024
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रामनवमी के दिन हुआ था राम का जन्म

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रामनवमी इस बार 21 अप्रैल को मनाई जाएगी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रामनवमी के दिन ही प्रभु श्रीराम  ने राजा दशरथ के घर पर जन्म लिया था. भगवान राम को भगवान विष्णु का अंश माना गया है. यही मुख्य कारण है कि चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को, रामनवमी भी कहा जाता है.पौराणिक कथा के अनुसार, महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ आरंभ करने की ठानी. महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया. महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया. निश्‍चित समय आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ जी तथा अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि को लेकर यज्ञ मण्डप में पधारे.

इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया. सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगन्ध से महकने लगा.राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद चरा(खीर) को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया. प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों ने गर्भधारण किया.जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अत्यंत सुंदर था. उस शिशु को देखने वाले देखते रह जाते थे. इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ.चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा किया गया तथा उनके नाम रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए.
आयु बढ़ने के साथ ही साथ रामचन्द्र गुणों में भी अपने भाइयों से आगे बढ़ने तथा प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय होने लगे. उनमें अत्यन्त विलक्षण प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरू अल्प काल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गए. उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एवं सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई. वे निरन्तर माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे.

 

 

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