प्रयागराज में 144 साल में एक बार आने वाला पवित्र महाकुंभ पर्व शुरू है। हजारों, लाखों नहीं करोड़ों की संख्या में देश- विदेश से लोग एक साथ आकर वहां पवित्र स्नान कर रहें है, नागा साधुओं से आशीर्वाद प्राप्त कर रहें है। कई लोगों ने, धार्मिक संस्थानों ने अपने अपने स्टॉल लगाए है। इनमें एक स्टॉल था तथाकथीत आचार्य प्रशांत का, जिसपर लगे आपत्ति जनक पोस्टर्स को देख साधुओं का गुस्सा फूटा और फिर उन्होंने प्रशांत के कार्यकर्ताओं को कूटा, पूरी बात क्या थी, आइए समझतें है इस वीडिओ में।
प्रयागराज के महाकुंभ से एक 3 मिनट का वीडिओ वायरल हो रहा है, जिसमें आप देख सकते है गुस्साए नागा साधुओं ने एक स्टॉल को तहस नहस कर दिया। उन्होंने स्टॉल पर रखे सभी आपत्ति जनक चीजों को जलाया और वहां के लोगों के पिटाई की। वहां पर मौजूद लोगों के अनुसार आचार्य प्रशांत के स्टाल पर कार्यकर्ता पोस्टर लेकर खड़े थे, जिस पर लिखा था, “कुंभ अंधविश्वास का मेला है, यह तो बस बहाना है। अगर आजादी चाहिए तो समझ जगाओ।” वहीं मौजूद लोगों ने बताया की माइक से प्रशांत के अनुयायी ऐसीही अनर्गल बकवास भी कर रहे थे।
कल मकर संक्रांति के अमृत स्नान में एक अजीब वाकया देखने को मिला। कुछ लोग अपनी तुच्छ मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए महाकुंभ मेला क्षेत्र में पोस्टर लेकर खड़े थे कि हमारा महाकुंभ एक पाखंड है और ऐसे ही और सारे और माईक से अलाउंस भी कर रहे थे। और अपने तर्क से संबंधित किताबें भी बांट रहे… pic.twitter.com/xKFahcPJKC
— ANGRY BIRD 💎 (Modi का परिवार) (@angryladki) January 16, 2025
नागा साधु वो होते है जिन्होंने अपना जीवन सनातन धर्म की साधना और रक्षा के लिए त्याग दिया होता है, ऐसे में उनके ही महापर्व में उनके ही राज में उनकी आस्था के खिलाफ कोई अनर्गल प्रलाप करे तो फिर तो उसे नागा साधुओं का गुस्सा झेलने की क्षमता भी होनी चाहिए।
वहीं इस वाकिए के बाद वहां पर मौजूद आचार्य प्रशांत के अनुयायीओं ने कहा की ये उनके स्टॉल पर किया गया हमला सुनियोजित था, जहां संदेहास्पद लोगों ने संदेहास्पद भूमिकाएं निभाकर उनके स्टॉल को और कार्यकर्ताओं को तोडा…इस सब के बीच उन्होंने बताया की नागाओं ने वहां पर रखी धार्मिक किताबें भी जलाई।
प्रशांत के चेलों ने प्रयाग में कुटाई का वीडिओ देखकर ट्विटर गरम करना शुरू किया, चेले कह रहें है, “धार्मिक किताबें जलाकर कौनसा धर्म बचाओगे। चेलों का कहना है की इसमें श्रीकृष्ण, राम की किताबें क्यों जलाई गई, जलाने वाले हिन्दू कैसे? ये कट्टर हिन्दूओं की असली धर्म से लोगों को दूर करने की साजिश है।” जैसे चेलों की ये आर्गूमेंट को हमने देखा की कट्टर हिंदुओं की साजिश है, वैसे ही हमने इनके गुरु की कंबल कुटाई का मन बना लिया।
आचार्य प्रशांत के कार्यकर्ता ने अपने लम्बे चौड़े स्टेटमेंट में कहा की वो जो पोस्टर था वो एक महिला ने वो हाथ से लिखकर हमें दिया था, जिस पर उन्होंने आपत्ति जताकर उसे बाजु में ऱख दिया था। उस पोस्टर में भ्रामक बात लिखी थी, जो आचार्य प्रशांत ने कभी नहीं कहीं। फिर वो महिला वहां से चली गई, फिर कुछ लोगों आए उन्होंने उस पोस्टर को उठाया और हंगामा करना शुरू किया।
मैं फौज में 30 वर्ष की अनुशासित और समर्पित सैनिक सेवा सहित सेना के कई गौरवशाली व साहसी मिशन का हिस्सा रहने के बाद रिटायर हुआ हूँ। देश के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं, और फौजी रिटायर होने के बाद भी राष्ट्रसेवा से पीछे नहीं हटता। सेवानिवृति के बाद मुझे लगातार ये महसूस होता रहा कि मैंने… pic.twitter.com/Wdq1KFQzpM
— Mohan Singh (@MohanSingh77076) January 16, 2025
अब मेरा सबसे पहला सवाल यही है की भाईसाहब अगर उस पोस्टर से आप को पहले ही आपत्ति थी तो उस पोस्टर को आपने स्टाल के आसपास रखा क्यों? चलो मान लिया पोस्टर आपका नहीं था, लेकीन माइक और गला तो आपका था जिससे आप नागाओं के सामने बकवास कर रहे थे ? नागा साधु भला आपसे आकर्षित होंगे ही क्यों अगर आप कुछ कर ही नहीं रहे थे। प्रशांत के चेलों के चेहरों से इतना तेज भी तो नहीं बह रहा की नागा साधु स्वयं भेंट करने जाए।
बात पुस्तकें जलाने की तो ये कह रहें है राम और कृष्ण की किताबें जलाई, जबकी किताबें तो आचार्य प्रशांत की जलाई गई है, जिसमें उसी पोस्टर में लिखी बकवास बातों के समान बातें लिखी होती है। सवाल तो ये है की इस धूर्त प्रशांत को आचार्य प्रशांत किसने बनाया? दिन में दो बार जॉइंट लगाकर कुछ लिख दिया तो उसे धर्म की किताब कहोगे क्या? धर्म के शास्त्र होते है। ये आदमी भगवद गीता सिखाता है, उस पर आएं-शाए दावें करता है। कहता है अर्जुन युद्ध इसलिए नहीं लड़ रहा था, क्यूंकि उसे भय था सब क्षत्रिय मर जाएंगे और उनकी पत्नियां किसी और वर्ण के साथ वर्णसंकर करेंगी ये उसकी सोशल कंडीशनिंग थी।
प्रखर के पॉडकास्ट में इस आदमी ने तो पुनर्जन्म की व्याख्या को ही बदल दिया था। इतनी तरह की जलेबियां ये आदमी शास्त्रों को लेकर बनाता है की अगर कोई खाए तो डाइबिटीज का पता नहीं, सुनने वाले को हिंदू विरोध का पाईल्स जरूर होगा। धर्म की दीक्षा देने वाले आचार्यो का कर्तव्य होता है की इसपर विशेष ध्यान दें उनका विद्यार्थी धर्म धारण करे उसी के अनुसार वे अपना जीवन ज्ञापन कर रहें है इसे सुनिश्चित करें, आचार्य प्रशांत अपने अनुयायिओं को ऐसे लेवल की जलेबियां देता है की वो धर्म से भटककर पता नहीं किसी पद्धती की सो कॉल्ड रैशनलिजम की बातें करने लगते है।प्रशांत की रैशनलीटी से दीक्कत यही है, की उसकी बाते, इसकी लिखाई, इसके दावे सब कुछ इर्रेशनल है। मानों कोई नया कल्ट पैदा कर रहा है।
एक हरियाणे का बाबा है संत रामपाल, उसमें और इसमें यही फर्क है की वो कम पढ़ा लिखा है इसिलए ख़राब क्वालिटी की जलेबियां तलता है, ये ज्यादा पढ़ा लिखा है, इसलिए ये टेस्टी जलेबियां तलता है, लेकीन काम दोनों का जलेबियां तलनाही है।
ये प्रशांत दावा तो करता है की ये अद्वैत वेदांत मानता है। अब अद्वैत वेदांत स्थापित किसने किया था? आदिगुरु शंकराचार्य ने। आप इस आदमी की किताबें पढ़ लो, गीता का निरूपण सुनलो, इसकी बातें आदिगुरु शंकराचार्य से कहीं मेल नहीं खाती। इस आदमी को मोक्ष की व्याख्या भी समझ नहीं आती। इसे हमनें आज तक किसी शास्त्री, आचार्य से डीबेट करते नहीं देखा फिर इसे आचार्य किसने बनाया ? हर धर्मग्रंथ से जो हिंदू साधकों के HHigher Motives है, उन्हें यह Undeserved और Needles बताने की कोशिश करता है।
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एक बात समझिए की हिंदू धर्म में कहा गया है, एकमं सत विप्रा बहुदा वदन्ती, अर्थात एक सत्य को विद्वान् अनेक मार्गों से बताते है। इसका अर्थ यह भी निकलता है की सत्य का मार्ग बताने वाला खुद बुद्धिमान भी होना चाहिए प्रशांत जैसे लोग नहीं। हमारे धर्म के अनुसार सब को अपनी बात रखने का, बात का प्रचार करने का अधिकार है, पर अपनी बात को लेकर बाकियों से उदंडता का व्यवहार करना मूर्खता है। हम गृहस्थ, आम लोग जो है वो आपकी उदंडता आपके भाषण स्वतंत्रता के लिए सह लेंगे। लेकीन, नागा साधुओं से आप आपकी उदंडता, पाखंड और दांभिकता के लिए आपसे सहनशीलता के व्यवहार की अपेक्षा करें यही मूर्खता है।