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Friday, September 20, 2024
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नवरात्र विशेष: पीतांबरा देवी की पूजा कर चुके हैं नेहरू अटल, जाने वजह   

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भारत में एक ऐसा मंदिर है जहां राजसत्ता के लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मध्य प्रदेश में स्थित पीतांबरा देवी मंदिर या बगलामुखी माता के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। यहां भारत चीन युद्ध के दौरान जवाहरलाल नेहरू ने भी मंदिर में 51 कुंडीय यज्ञ कराया था जिसके 11 वे दिन चीन ने बॉर्डर से अपनी सेना हटा ली थी। इतना ही नहीं राजसत्ता भोगने वाले नेता और नौकरशाह भी मां पीतांबरा के दर्शन के लिए आते रहते हैं। यह मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया में स्थित है। इस शक्तिपीठ में हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं के लिए आते हैं। इसी परिसर में मां धूमावती मंदिर भी स्थित है। नवरात्र पर यहां भक्तों की संख्या बाद जाती है।

माना जाता है कि पीताम्बरा शक्तिपीठ की स्थापना 1935 में तेजस्वी स्वामी जी ने की थी। चतुर्भुज रूप में निवास करने वाली देवी माता के प्रति स्वामीजी की भक्ति के कारण देवी के जन्मस्थान, नाम, परिवार आदि का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है। इस रूप में उसके एक हाथ में गदा है, दूसरे हाथ में जाल है। इस तीसरे में वह बाजरे को पकड़े हुए हैं और चौथे में वह शैतान की जुबान पकड़ रही हैं।

उनका दर्शन एक छोटी सी खिड़की से मिलता है। माता को बगलामुखी के नाम से भी जाना जाता है। उनका मनपसंद भोग पीले रंग की वस्तुओं से लगाया जाता है। मंदिर में लोग प्याज के पकौड़े, समोसा और ममकीन चढ़ाते हैं। किसी को भी मां की मूर्ति को छूने की इजाजत नहीं है। यहाँ पर तस्वीर नहीं ली जा सकती है जिसकी सख्त मनाही है। यही कारण है कि राजनीतिक सत्ता या धन की आकांक्षा रखने वाले लोग मंदिर में मां के दर्शन आते हैं।

बताया जाता है कि भारत चीन युद्ध के दौरान किसी तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को  पीतांबरा मंदिर में यज्ञ कराने सलाह दी।जिसके बाद यहां 51 कुंडलीय यज्ञ किया गया था। जिसकी वेदी आज भी है। इस युद्द आलावा भारत पाक युद्ध और कारगिल युद्ध के दौरान भी अनुष्ठान किये गए थे। हालांकि, राजसत्ता से जुड़े सभी अनुष्ठान गोपनीय तरीके से किये जाते हैं।

यह मंदिर पीतांबरा मंदिर दतिया के उसी परिसर में स्थित है, यह देवी का अजीब रूप है जहां देवी शक्ति को सफेद साड़ी और खुले बालों में एक कौवे पर बैठे हुए दिखाया गया है। प्रथम दृष्टया यह किसी विधवा की तरह दिखता है। इस मंदिर में केवल पुरुष और विधवा महिलाएं ही पूजा करती हैं। विवाहित महिलाओं और लड़कियों को इस मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है। यह मंदिर केवल शनिवार को जनता के लिए सुबह 3 घंटे और शाम को 3 घंटे खुला रहता है। अन्य दिनों में यह सुबह और शाम की आरती के समय कुछ मिनटों के लिए ही खुलेगी।

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