विश्व हिंदू परिषद की किताबें ही क्यों संवेदनशील?

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कल कोलकाता अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के आयोजक प्रकाशक गिल्ड को निर्देश दिया कि वह इस साल 28 जनवरी से 9 फरवरी तक आयोजित होने वाले वार्षिक कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के स्टॉल के लिए स्थान की व्यवस्था करे। न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने गिल्ड अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी को उनकी पीठ के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करें। ऐसा भी क्या हुआ की बुक फेयर में स्टॉल देने के लिए उच्च न्यायलय को दाखिल होना पड़ा ?

कोलकता अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के अधिकारियों अर्थात गिल्ड के अधिकारियों ने इस वर्ष विश्व हिन्दू परिषद को कोलकाता अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले के 48वें संस्करण में स्टॉल लगाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। अगर बुक फेयर लगाया गया है तो सभी विचारों की बुक्स वहां आएंगी। अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मोहत्सव है, कोई आपसी कार्यक्रम नहीं है, इसीलिए विश्व हिंदू परिषद् को स्टॉल देने से मना करना संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है। इस मामले में गिल्ड अधिकारियों के निर्णय के खिलाफ विश्व हिंदू परिषद् ने कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

केस के दौरान गिल्ड के वकील ने अपनी दलील में वीएचपी अधिकारियों को स्टॉल की अनुमति न देने के दो कारण बताए। पहली आपत्ति – वीएचपी ने प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करते हुए स्टॉल आवंटन के लिए आवेदन नहीं किया, और दूसरी – संगठन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की सामग्री की ‘अत्यधिक संवेदनशील’ प्रकृति की है साथ ही vhp का कोई प्रकाशन भी नहीं है। 

परिषद की ओर से कहा गया कि ‘विश्व हिंदू वार्ता’ VHP की ही प्रकाशन शाखा है और इसे 2011 से कोलकाता अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में स्टॉल आवंटित किया जा रहा है। ऐसे में किसी पूर्वग्रह दूषित भावनाओं से उन्हें स्टॉल नकारा जा रहा है। विश्व हिंदू परिषद ने आयोजकों से पुस्तक मेले में स्टॉल लगाने की इजाजत मांगी थी लेकिन इस साल नियमों में बदलाव का दावा किया गया ऐसा कह कर उन्हें स्टॉल देने से मना किया गया था, इसीलिए वे आवेदन नहीं कर पाए।  

आयोजक बार बार दावा करते रहे की परिषद जो सामग्री स्टॉल पर रखती है वो संवेदनशील है। ये केस जस्टिस अमृता सिन्हा के सामने चल रहा था। उन्होंने ने इस बात पर आयोजकों से सवाल किया की VHP 2011 से स्टॉल में पुस्तकें लगा रही है, आप ने उन्हें पहले क्यों नहीं रोका? अगर उन्होंने कोई अत्यधिक संवेंदनशील पुस्तकें प्रकाशित की भी है, तो क्या उन्हें आप ने पहले ये बात बताई है की कौनसी पुस्तक संवेदनशील है? क्या वे इससे पहले संवेदनशील पुस्तके प्रकाशित नहीं कर रहें अब अचानक से करने लगे? न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा आपके कोई कानून नहीं है, जो बदले गए है। ऐसे में आप ने उन्हें बुक स्टॉल देने से कैसे रोक सकते है? आप अपने हिसाब से नियम कैसे बना सकते हो? कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए विश्व हिंदू परिषद को बुक फेयर में स्टाल देने के साथ ही इसकी जानकारी कोर्ट को देने को कहा है। 

आप ये समझिए की ये कोई पहली बार नहीं है की विश्व हिंदू परिषद् के साथ बुक फेयर के मामलें में अड़ंगा डाला जा रहा है। 2020 के कोलकाता बुक फेयर में तो VHP के स्टॉल की तोड़-फोड़ की गई थी। भगवद गीता की पुस्तकों को फाड़कर उनकों पैरों तले कुचला गया था। उस स्टॉल में लीब्रण्डुओंने घोर उत्पात मचाया था और कलकत्ता पुलिस मूकदर्शक बन खड़ी थी। इस तोड़फोड़ को कलकत्ता के दंगाईयों ने सीएए कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कहा था। असल में तोड़फोड़ किस चीज़ से शुरू हुई थी पता है? VHP के हनुमान चालीसा बांटने से। मतलब जहां मुस्लिम संघटन कुरान बांट रहे थे। ख्रिस्ती संघटन बाइबल बांट रहें थे तो VHP ने भी हनुमान चालीसा बांटी।  इसी बात को संवेदनशील कहते हुए कोलकत्ता पुलिस ने VHP का स्टॉल तक बंद करवाया था।

दोस्तों कुरान प्रचार संगठन का नाम आपने सुना है ? उन्हें इस आंतरराष्ट्रीय बुक फेयर में तुरंत जगह मिल गई है, इतना ही नहीं कम्युनिस्ट संघटनाओं को भी इस फेयर में अपनी किताबें रखने की जगह मिल गई है। वैसे विद्रोही साहित्य के नाम पर जो अर्बन नक्सलिज़्म के प्रमोशन को बढ़ावा देनेवाले साहित्य बेचें जाते है उस पर बुक फेयर के आयोजकों को कोई आपत्ति क्यों नहीं होती। आपको एक संवेदनशील किताब बताऊं, जो पूरी दुनियां में आतंकवाद का मुख्य स्त्रोत बनी हुई है?खैर कुछ कहेंगे तो विवाद हो सकता है।

VHP कोई संवेदनशील सामग्री बेचती भी है तो आपको उन्हें बताना चाहिए की वो सामग्री कौनसी है, उसमें संवेदनशील क्या लिखा हुआ है। हनुमान चालीसा, भगवद गीता, डॉ. हेडगेवार की जीवनी, सुभाषचंद्र बोस की जीवनी, स्वामी विवेकानंद की जीवनी यही किताबें तो वो रखतें है। अगर उसमें कुछ संवेदनशील लिखा है और तथ्यात्मक नहीं है तो आप VHP की किताबों को नकार सकते है लेकीन उन्हें अपनी अभिव्यक्ती से रोकना, अपने विचारों का प्रचार करने से रोकना इससे भी अधिक संवेदनशील होगा। ये किताबे इतना ही संवेदनशील है तो उन किताबों को सरकार से बैन करवाना चाहिए। पर यहां दिक्कत किताबों की संवेदनशीलता न होकर राजनीतिक स्वार्थ की है।

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सब जानते है कोलकाता के इंटरनॅशनल फेयर के रुदालीपन के पिछे ममता दीदी है और टीएमसी है, जिस नेता को जय श्री राम घोषणा सुनने से गुस्सा आता हो उसके उसे VHP की भक्ति से और धर्मो रक्षति रक्षितः भावना से पीड़ा होना स्वाभाविक भी है। 

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