भगवान शिव को क्यों प्रिय है बेल पत्र, जानें इसके पीछे की कथा

भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करते समय तीन पत्तियों वाली बेल पत्र ही चढ़ाना चाहिए।

भगवान शिव को क्यों प्रिय है बेल पत्र, जानें इसके पीछे की कथा

जब बात भगवान शिव की सबसे प्रिय चीजों की आती है तो उसमें सबसे पहले बेलपत्र का नाम आता है। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि बेलपत्र भगवान शिव को बेहद प्रिय है और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाए बिना पूजा को पूर्ण नहीं माना जाता। ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करने से महादेव प्रसन्न होते हैं। इसलिए आज 18 फरवरी को महाशिवरात्रि के मौके पर आप भी भगवान शिव को बेलपत्र जरूर चढ़ाएं। लेकिन शिवजी को बेलपत्र इतना प्रिय क्यों है जानिए इसकी वजह…

बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं जिसको लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। तीन पत्तों को कहीं त्रिदेव देव ब्रह्मा, विष्णु और शिव तो कहीं तीन गुणों अर्थात सत्व, रज और तम, तो कहीं तीन आदि ध्वनियों जिनकी सम्मिलित गूंज से ऊं बनता है का प्रतीक माना जाता है। वहीं बेलपत्र की इन तीन पत्तियों को महादेव की तीन आंखें या उनके शस्त्र त्रिशूल का भी प्रतीक माना जाता है।

कहते हैं कि जब समुद्र मंथन के बाद विष निकला तो भगवान शिव ने पूरी सृष्टि को बचाने के लिए ही इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और उनका पूरा शरीर अत्यधिक गरम हो गया जिसकी वजह से आसपास का वातावरण भी गरम होने लगा। चूंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है इसलिए सभी देवी देवताओं ने बेलपत्र शिवजी को खिलाना शुरू कर दिया। बेलपत्र के साथ साथ शिव को शीतल रखने के लिए उन पर जल भी अर्पित किया गया। बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी।

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार एक भील नाम का डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार जब सावन का महीना था, भील नामक यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया। इसके लिए वह एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। देखते ही देखते पूरा एक दिन और पूरी रात बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह डाकू चढ़कर छिपा था, वह बिल्व का पेड़ था। रात-दिन पूरा बीत जाने के कारण वह परेशान हो गया और बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था।

भील जो पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था, वे शि‍वलिंग पर गिर रहे थे, और इस बात से भील पूरी तरह से अनजान था। भील द्वारा लगातार फेंके जा रहे बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए। भगवान शि‍व ने भील डाकू से वरदान मांगने के लिए कहा, और भील का उद्धार किया। बस उसी दिन से भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने का महत्व और अधिक बढ़ गया।

जबकि पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब पार्वती जी के माथे से पसीने की कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर जा गिरी। पार्वती जी के उस पसीने की बूंद से ही बेल का वृक्ष उत्पन्न हुआ। वहीं शास्त्रों के अनुसार देवी पार्वती जी घोर तप के बाद शिव की अर्धांगिनी बनी और सबसे पहले महादेव को राम नाम लिखकर बेलपत्र माता पार्वती ने ही चढ़ाया था।

बेल पत्र चढाते समय इन नियमों का ध्यान रखें- भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करते समय ध्यान रखे एक साथ जुड़ी हुई तीन पत्तियों वाली बेल पत्र ही चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसकी पत्तियां कहीं से भी कटी-फटी न हो या फिर उसमें कहीं छेद न हो। बेल पत्र को कभी भी अशुद्ध नहीं माना जाता है। शिव जी को चढ़ाए गए बेल पत्र को दोबारा धुलकर फिर से चढ़ाया जा सकता है।

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