द लैंसेट मेडिकल जर्नल की एक चौंकाने वाली नई रिपोर्ट में प्लास्टिक प्रदूषण को मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए “अनदेखा और गंभीर खतरा” बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आम जनता अभी तक यह समझ नहीं पाई है कि प्लास्टिक किस हद तक जीवन और प्रकृति को प्रभावित कर रहा है। यह रिपोर्ट अमेरिका के बोस्टन कॉलेज के प्रोफेसर फिलिप जे. लैंडरिगन और उनकी अगुआई में तैयार की गई है। उन्होंने चेतावनी दी कि,“प्लास्टिक जन्म से लेकर मृत्यु तक बीमारियों और मृत्यु का कारण बनता है। इसके कारण सालाना 1.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का स्वास्थ्य संबंधी आर्थिक नुकसान होता है।”
रिपोर्ट में बताया गया है कि प्लास्टिक के निर्माण और उपयोग से निकलने वाले पीएम2.5, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और अन्य जहरीले रसायन न केवल पर्यावरण बल्कि मानव शरीर के लिए भी बेहद हानिकारक हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि, माइक्रोप्लास्टिक कण अब मानव टिशू और शरीर के तरल पदार्थों में भी पाए जा रहे हैं। इन रसायनों का प्रभाव बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर आयु वर्ग में देखा जा सकता है। अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि प्लास्टिक में कौन-कौन से रसायन हैं, वे कितनी मात्रा में हैं और उनका लंबे समय में शरीर पर क्या असर पड़ता है।
अमेरिका, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में यह भी चेताया है कि,“प्लास्टिक के रासायनिक घटकों को लेकर जानकारी की भारी कमी है। यह पारदर्शिता की कमी ही इस संकट के प्रभावी समाधान में सबसे बड़ी बाधा बन चुकी है।”
पर्यावरणीय संकट भी गहराता जा रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में करीब 57 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा खुले में जलाया जाता है, जिससे हवा अत्यधिक प्रदूषित हो रही है। यह केवल वायुमंडल को नुकसान नहीं पहुंचा रहा, बल्कि मच्छरों के प्रजनन और रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों के पनपने के लिए आदर्श परिस्थितियाँ उत्पन्न कर रहा है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि यदि प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग की वर्तमान प्रवृत्ति यूँ ही जारी रही, तो साल 2060 तक इसका उत्पादन तीन गुना तक बढ़ सकता है, जिससे पर्यावरणीय तबाही और भी गंभीर हो जाएगी।
प्रोफेसर लैंडरिगन का कहना है कि,“प्लास्टिक प्रदूषण को रोकना असंभव नहीं है। पारदर्शी नीतियां, सख्त नियम और वित्तीय सहायता से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।” साल 2022 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने एक ग्लोबल प्लास्टिक ट्रीटी पर सहमति जताई थी। इस संदर्भ में 5 अगस्त को एक अहम बैठक प्रस्तावित है।
इसके साथ ही, विशेषज्ञों ने “लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड प्लास्टिक्स” नामक एक नई पहल की घोषणा की है, जो प्लास्टिक के स्वास्थ्य प्रभावों पर नजर रखेगी। इसकी पहली रिपोर्ट 2026 के मध्य में जारी होने की उम्मीद है।
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