कई युवा आईएएस और आईपीएस अधिकारी बनने का सपना देखते हैं। देशभर से लाखों युवा हर साल यूपीएससी की परीक्षा देते हैं। देशभर के युवा यूपीएससी परीक्षा पास कर आईपीएस या आईएएस अधिकारी बनकर देश की सेवा करना चाहते हैं। लेकिन यह परीक्षा बहुत कठिन है| इस परीक्षा का परिणाम भी वैसा ही है| ऐसे में एक-एक अंक के लिए छात्रों का सपना अधूरा रह गया है। कई युवा अपने जीवन के कई साल यूपीएससी की पढ़ाई में बिता देते हैं।
इनमें से कई सफल होते हैं|बार-बार कोशिश करने के बाद भी सफलता नहीं मिलने पर कुछ लोग दूसरे क्षेत्र में जाकर अपना करियर बनाने की कोशिश करते हैं। हम सभी जानते हैं कि आईपीएस और आईएएस अधिकारी बनना कितना कठिन है। लेकिन हम आपको देश के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के हर घर में एक आईपीएस या आईएएस अधिकारी पैदा होता है।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का माधोपट्टी गांव अफसरों के गांव के रूप में मशहूर है। ऐसा कहा जाता है कि इस गांव में केवल आईपीएस और आईएएस अधिकारी ही पैदा हुए हैं। 75 घरों वाले इस गांव में 47 आईएएस अधिकारी हैं, जो उत्तर प्रदेश सहित देशभर के विभिन्न राज्यों में सेवारत हैं।
आजादी के पहले से ही इस गांव के कई नागरिक प्रशासनिक सेवा में जाते रहे हैं। यह गांव जौनपुर जिले से 11 किमी दूर है| इस गांव के हर घर में एक आईपीएस या आईएएस अधिकारी है। दिलचस्प बात यह है कि इस गांव के युवा न सिर्फ प्रशासनिक सेवाओं में बल्कि भाभा परमाणु केंद्र, इस्ट्रो जैसे प्रतिष्ठित संगठनों में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं| इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बैंकर उच्च पदों पर कार्यरत हैं।
माधोपट्टी गांव में हर गली में लाल-नीले रंग का दीपक तैरता हुआ देखने को मिलता है| इस गांव की आबादी करीब 800 है, जिसमें सबसे बड़ी संख्या राजपूत समुदाय की है| माधोपट्टी गांव की एक और खासियत यह है कि इस गांव में कोई कोचिंग क्लास नहीं है। फिर भी यहां विद्यार्थी सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचते नजर आते हैं।
एक ही परिवार में पांच आईएएस अधिकारी: माधोपट्टी गांव के एक परिवार का रिकॉर्ड अच्छा है| इस परिवार के चार भाई-बहनों ने आईएएस की परीक्षा पास की है। इस परिवार के सबसे बड़े बेटे विनय सिंह ने 1955 में यूपीएससी की परीक्षा पास की| सेवानिवृत्ति के समय विनय सिंह बिहार के मुख्य सचिव थे| उनके भाई छत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह 1964 में आईएएस बने।
फिर उनके छोटे भाई शशिकांत सिंह ने 1968 में यूपीएससी की परीक्षा पास की| दिलचस्प बात यह है कि इस परिवार की अगली पीढ़ी यानी शशिकांत सिंह के चिरंजीव यशस्वी ने 2002 में यूपीएससी परीक्षा पास की। यशस्वी 31वीं रैंक से पास हुए और आईएएस बने।
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