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ICMR वैज्ञानिकों ने फंगल पैथोजन से लड़ने का नया तरीका खोजा, कैंडिडा संक्रमण पर कसा शिकंजा!

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भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों ने एक अहम उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने कैंडिडा एल्बिकेंस (सीएएल) नामक खतरनाक फंगल पैथोजन से निपटने के लिए एक नया और अनूठा तरीका विकसित किया है। यह वही पैथोजन है जो ‘सिस्टमिक कैंडिडिआसिस’ नामक गंभीर बीमारी का मुख्य कारण बनता है। यह बीमारी कई मामलों में जानलेवा साबित होती है।

इस शोध में आईसीएमआर के वैज्ञानिकों के साथ आईआईटी मद्रास और वाधवानी स्कूल ऑफ डेटा साइंस एंड एआई (WSAI) के शोधकर्ताओं ने बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाया। टीम ने बड़े पैमाने पर कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग और प्रयोगात्मक सत्यापन को मिलाकर पैथोजन के मेटाबॉलिक पाथवे की छिपी हुई कमजोरियों की पहचान की।

मुंबई स्थित आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच की वैज्ञानिक और इस शोध की प्रमुख अन्वेषक डॉ. सुसान थॉमस ने बताया कि इस अध्ययन में सीएएल मॉडल को रिकन3डी नामक मानव मेटाबॉलिक मॉडल के साथ जोड़ा गया। इससे यह समझने में मदद मिली कि संक्रमण के दौरान पैथोजन का मेटाबॉलिज्म कैसे बदलता है और कौन-सी चयापचय कमजोरियां प्रयोगशाला परीक्षणों में छिपी रह जाती हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से आर्जिनिन मेटाबॉलिज्म की अहम भूमिका भी सामने आई।

आईआईटी मद्रास के प्रो. कार्तिक रमन ने कहा कि यह अध्ययन बेहद खास है क्योंकि यह न सिर्फ एंटीफंगल दवाओं में विविधता और सुधार का मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि इससे मरीजों की जीवन दर में वृद्धि, मृत्यु दर में कमी और उपचार की लागत घटाने में भी मदद मिलेगी।

यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल Cell Communication and Signaling में प्रकाशित हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह उपलब्धि भारत की वैज्ञानिक क्षमता को दर्शाती है और वैश्विक स्वास्थ्य संकट माने जाने वाले फंगल संक्रमणों के समाधान में अहम योगदान देगी।

कैंडिडा एल्बिकेंस यीस्ट की एक प्रजाति है जो सामान्य तौर पर मानव शरीर की माइक्रोबायोटा का हिस्सा होती है। हालांकि, जब यह असंतुलित हो जाती है, तो रक्तप्रवाह और आंतरिक अंगों तक फैलकर जानलेवा सिस्टमिक कैंडिडिआसिस का कारण बनती है। भारत में हर साल लगभग 4.7 लाख लोग इस संक्रमण का शिकार होते हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह संख्या 15 लाख से अधिक है। चिंताजनक बात यह है कि इनमें से लगभग 64 प्रतिशत मामले मौत में बदल जाते हैं। यह खोज फंगल संक्रमणों के खिलाफ भारत की लड़ाई को नई दिशा देती है और भविष्य में अधिक प्रभावी दवाओं के विकास की राह खोल सकती है।

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