आज भारत के महान सिविल इंजीनियर, दूरदर्शी प्रशासक और राष्ट्र निर्माता सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की पुण्यतिथि है। 14 अप्रैल 1962 को उनका निधन हुआ था, लेकिन उनके विचार, योजनाएं और समर्पण आज भी देश की विकास गाथा में जीवित हैं। उन्हें सम्मानपूर्वक “भारत के इंजीनियरिंग पुरुष” और “आधुनिक भारत के शिल्पकार” के रूप में याद किया जाता है।
15 सितंबर 1861 को तत्कालीन मैसूर राज्य (अब कर्नाटक के चिकबल्लापुर ज़िले) के मुद्देनहल्ली में जन्मे विश्वेश्वरैया एक तेलुगु भाषी परिवार से थे। उनके पिता मोक्षगुंडम श्रीनिवास शास्त्री और माता वेंकटलक्ष्मम्मा ने उन्हें मूल्यनिष्ठा, शिक्षा और सेवा के संस्कार दिए। उन्होंने बैंगलोर में प्रारंभिक शिक्षा ली और मद्रास विश्वविद्यालय से बीएससी की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया, जो एशिया का तीसरा सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज है।
विश्वेश्वरैया ने ब्रिटिश भारत सरकार के साथ इंजीनियर के रूप में कार्य आरंभ किया। उन्होंने बॉम्बे प्रेसिडेंसी, मध्य-पूर्व, और हैदराबाद में कई जल परियोजनाओं और सिंचाई योजनाओं पर कार्य किया। उन्होंने आधुनिक जल आपूर्ति और सिंचाई प्रणालियों की नींव रखी। उन्होंने “ब्लॉक सिस्टम” और “स्वचालित स्लूइस गेट्स” जैसी नवाचार तकनीकों का विकास किया, जो उस समय क्रांतिकारी मानी जाती थीं।
1909 में उन्होंने ब्रिटिश सेवा से सेवानिवृत्ति ली और तत्पश्चात 1912 से 1918 तक मैसूर राज्य के दीवान (प्रधानमंत्री) के रूप में कार्य किया। उनके कार्यकाल में मैसूर राज्य ने कृषि, उद्योग, शिक्षा और जल प्रबंधन के क्षेत्रों में अभूतपूर्व विकास देखा। उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय, विजया बैंक, सैंडलवुड ऑयल फैक्ट्री, और कृष्णराज सागर बांध जैसी संस्थाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1955 में, भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। इससे पहले, ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने उन्हें ‘नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर’ की उपाधि से नवाजा था। उनकी जन्म-जयंती 15 सितंबर को हर वर्ष भारत, श्रीलंका और तंज़ानिया में ‘इंजीनियर्स डे’ के रूप में मनाई जाती है।
सर विश्वेश्वरैया ने न केवल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में, बल्कि राष्ट्र निर्माण और प्रशासन में भी जो योगदान दिया, वह आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उन्होंने दिखाया कि कैसे तकनीकी कौशल, दूरदर्शिता और राष्ट्रभक्ति से एक साधारण व्यक्ति भी असाधारण बन सकता है। उनकी पुण्यतिथि पर भारत नतमस्तक है, और उन्हें याद करता है एक ऐसे महापुरुष के रूप में, जिन्होंने “कर्म ही पूजा है” को अपने जीवन का मूल मंत्र बनाया।
यह भी पढ़ें:
राष्ट्रपति मुर्मू और पीएम मोदी ने संसद में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को अर्पित की पुष्पांजलि !
अखिलेश और केजरीवाल एक और भ्रामक सोशल मीडिया पोस्ट, हुई कड़ी आलोचना !
पश्चिम बंगाल में हिंसा प्रभावित इलाकों पर राज्यपाल सख्त, बोले- अब बख्शा नहीं जाएगा!