समुद्री जीवन के छोटे लेकिन शक्तिशाली सीपियाँ न केवल स्वादिष्ट समुद्री भोजन का हिस्सा हैं, बल्कि ये समुद्र और नदियों के प्राकृतिक शुद्धिकरण तंत्र भी है। फ्रांसीसी समुद्री जीवविज्ञानी लेइला मिस्टर्ज़ाइम (Leila Meistertzheim) का कहना है कि सीपियाँ “समुद्र के सुपर-फिल्टर” हैं, जो एक दिन में करीब 25 लीटर पानी को फिल्टर कर सकते हैं।
सीपियाँ समुद्री पारिस्थितिकी में “हूवर ऑफ द सी” यानी प्राकृतिक वैक्यूम क्लीनर की भूमिका निभाते हैं। वे पानी से फाइटोप्लैंकटन के साथ-साथ माइक्रोप्लास्टिक, कीटनाशक और अन्य प्रदूषक कणों को भी खींच लेते हैं। इस प्रक्रिया में वे अपने शरीर में इन पदार्थों को जमा कर लेते हैं, जिससे वे समुद्र के स्वास्थ्य के संकेतक (bio-indicators) के रूप में कार्य करते हैं।
मिस्टर्ज़ाइम के नेतृत्व में फ्रांस की तारा ओशन फाउंडेशन (Tara Ocean Foundation) इस समय एक अध्ययन कर रही है जिसमें मसल्स को इंग्लैंड की थेम्स, जर्मनी की एल्बा और फ्रांस की सेन नदियों के मुहानों में रखा गया है। एक महीने बाद इन सीपियाँ का विश्लेषण किया जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनके ऊतकों में कौन-कौन से रासायनिक तत्व जमा हुए हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में सीपियाँ का उपयोग समुद्री जल से माइक्रोप्लास्टिक और अन्य रासायनिक प्रदूषकों को साफ करने के लिए किया जा सकता है। कई जगहों पर पहले से ही सीपियाँ और ऑयस्टर को कीटनाशक और बैक्टीरिया जैसे प्रदूषकों को हटाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के पर्यावरण इंजीनियर रिचर्ड लुथी के अनुसार, मसल्स “ई.कोली जैसे जीवाणुओं को हटाने और निष्क्रिय करने” में भी सहायक होते हैं। वे बताते हैं कि सीपियाँ इन बैक्टीरिया को अपशिष्ट (faeces या mucus) के रूप में बाहर निकाल देते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता सुधरती है।
यूएस नेशनल ओशेनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) की वैज्ञानिक ईव गैलिमनी के अनुसार, मसल्स यूट्रोफिकेशन (eutrophication) की समस्या से भी लड़ने में सक्षम हैं। यह वह स्थिति होती है जब फॉस्फेट और नाइट्रेट जैसे रासायनिक पोषक तत्वों के कारण जलाशयों में अत्यधिक शैवाल पनप जाते हैं और ऑक्सीजन की कमी से जलीय जीव मरने लगते हैं।
गैलिमनी ने न्यूयॉर्क की ब्रॉन्क्स नदी में प्रयोग कर दिखाया कि मसल्स शैवाल खाकर इन पोषक तत्वों को “रिसायकल” कर पानी को साफ रखते हैं।
स्वीडन, डेनमार्क और बाल्टिक देशों में चल रही “बाल्टिक ब्लू ग्रोथ” परियोजना में सीपियाँ को विशेष रूप से पाला जा रहा है ताकि उन्हें पशु, मुर्गियों, मछलियों और सूअरों के चारे में मिलाया जा सके। परियोजना प्रमुख लीना टैसे के अनुसार, “बाल्टिक सागर में यूट्रोफिकेशन सबसे बड़ी और सबसे तात्कालिक समस्या है, और मसल्स इसका समाधान बन सकते हैं।” हालांकि बाल्टिक सीपियाँ आकार में छोटी होती हैं, इसलिए उन्हें इंसानों की बजाय पशुओं के भोजन में प्रयोग किया जाता है।
हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने पाया है कि सीपियाँ के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक इंसानों तक पहुंच सकता है। 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, हर 100 ग्राम मसल्स में लगभग 70 सूक्ष्म प्लास्टिक कण पाए गए। विश्व वन्यजीव कोष (WWF) की रिपोर्ट के मुताबिक, औसतन एक व्यक्ति हर सप्ताह लगभग 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगलता है, जो एक क्रेडिट कार्ड के वजन के बराबर है।
हालांकि, मिस्टर्ज़ाइम कहती हैं कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है। उनके शब्दों में,“मैं खुद सीपियाँ खाती हूं। मसल्स की एक प्लेट उतनी हानिकारक नहीं है, जितना प्लास्टिक पैकिंग में रखा ऑर्गेनिक बर्गर।”
यह भी पढ़ें:
सेलीना जेटली के भाई UAE में हिरासत में, दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब!
हिंदुजा ग्रुप के चेयरमैन गोपीचंद पी. हिंदुजा का लंदन में निधन, 85 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
कोलकाता में ममता बनर्जी ने निकाली ‘SIR विरोध रैली’, भाजपा ने कहा — ‘जमात की सभा’



