29 C
Mumbai
Thursday, September 19, 2024
होमब्लॉगअगला 5 अगस्त क्यों है खास नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए?

अगला 5 अगस्त क्यों है खास नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए?

• कश्मीर से अनुच्छेद 370 का ख़ात्मा – वादा पूरा • अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू – वादा पूरा • संपूर्ण देश में समान नागरिक संहिता – वादा अधूरा

Google News Follow

Related

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बहुत महत्वपूर्ण बात कही। अदालत ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड की ज़रूरत है और इसे लाने का यह बहुत उपयुक्त समय है, लिहाज़ा, नरेंद्र मोदी सरकार का इस दिशा में ज़रूरी क़दम उठाना चाहिए। भारतीय समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़े फ़र्क़ ख़त्म हो रहे हैं। इस बदलाव की वजह से दूसरे धर्म और दूसरी जातियों में शादी करने और फिर तलाक़ होने में दिक्क़तें आ रही हैं। आज की युवा पीढ़ी को इन दिक्क़तों से बचाने की ज़रूरत है। इस समय देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लेकर जो बात कही गई है, उसे हकीकत में बदलना होगा।

दरअसल, मीणा जनजाति की एक महिला और उसके हिंदू पति के बीच तलाक़ के मुक़दमे की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। इस केस में पति हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से तलाक चाहता है, जबकि पत्नी का कहना है कि वह मीणा जनजाति की है और उस पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता। पत्नी ने मांग की थी कि उसके पति की तरफ़ से फैमिली कोर्ट में दायर तलाक़ की अर्जी ख़ारिज की जाए। उसके पति ने हाईकोर्ट में पत्नी की इसी दलील के ख़िलाफ़ अपील की। दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद देश में समान नागरिक संहिता लागू करने पर फिर से बहस छिड़ गई है।

यह संयोग है कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के तीन शीर्ष चुनावी मुद्दों में से एक रहा है। दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी का पहला वादा 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेदों 370 एवं 35 ए को ख़त्म करके पूरा किया। इसी तरह कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने की पहली सालगिरह यानी 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री ने अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रख कर पार्टी का दूसरा वादा भी पूरा कर दिया। ऐसे सवाल उठना लाज़िमी है क्या आगामी 5 अगस्त को भाजपा अपनी तीसरा चुनावी पूरा कर देगी? यानी क्या नरेंद्र मोदी 5 अगस्त तक देश में समान नागरिक संहिता भी लागू कर देंगे?

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी ही नहीं, बल्कि भारतीय जनसंघ की स्थापना के बाद से ही दल के तीन प्रमुख मुद्दे रहे हैं। पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए का खात्मा, दूसरा अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर का निर्माण और तीसरा देश में समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन। पार्टी अपने हर चुनाव घोषणा पत्र में इस तीनों मुद्दों का ज़िक्र करती है। दिल्ली हाईकोर्ट से पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी सितंबर 2019 में गोवा के एक परिवार की संपत्ति के बंटवारे पर फैसला देते हुए समान नागरिक संहिता का जिक्र किया था। देश की सबसे बड़ा अदालत ने इस बात पर निराशा जताई थी कि भारत में अब तक समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।

इससे पहले अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई तलाक़ क़ानून में बदलाव की मांग करने वाली याचिका सुनते हुए केंद्र सरकार से कहा था, कि देश में अलग अलग पर्सनल लॉ की वजह से भ्रम की स्थिति बनी रहती है। इसलिए सरकार एक समान कानून बना कर इस विसंगति को दूर कर सकती है। यह अदालत चाहती है कि सरकार को यह काम कर देना चाहिए। हालांकि संविधान बनाते समय समान नागरिक संहिता पर विस्तृत चर्चा हुई थी। अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्व के तहत उम्मीद जताई गई थी कि भविष्य में ऐसा क़ानून बनाया जाएगा।

आज़ादी मिलने के बाद देश में केवल हिंदुओं के लिए इस तरह का क़ानून बनाया गया। सन् 1954-55 में भारी विरोध के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हिंदू कोड बिल लेकर आए। इसी आधार पर हिंदू विवाह कानून और उत्तराधिकार कानून जैसे क़ानून बनाए गए। देश में हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के लिए विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसे कानून संसद ने बना दिए, लेकिन मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदायों को अपने-अपने धार्मिक कानून यानी पर्सनल लॉ के आधार पर ही शादी, तलाक और उत्तराधिकार की परंपरा चलाने की छूट दी गई। हालांकि इस तरह की छूट नगा ट्राइबल समेत देश के कई आदिवासी समुदायों को भी हासिल है।

समान नागरिक संहिता का मतलब है विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम बनाना। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इसका मतलब परिवार के सदस्यों के आपसी संबंध और अधिकारों को लेकर समानता। लिंग, जाति, धर्म, परंपरा के आधार पर कोई रियायत न देना। फ़िलहाल भारत में नागरिकों को धर्म और परंपरा के नाम पर अलग नियम मानने की छूट मिली हुई है। मसलन, किसी समुदाय में बच्चा गोद लेने पर रोक है, तो किसी समुदाय में पुरुषों को एक से अधिक शादी करने की इजाज़त है। कहीं-कहीं विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम लागू है। समान नागरिकता क़ानून लागू होने पर किसी समुदाय विशेष के लिए अलग से कोई नियम नहीं होंगे। सबके लिए एक ही क़ानून होगा।

जब भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात होती है, तब धार्मिक कट्टरपंथी इस क़दम को सीधे धर्म पर हमले की तरह पेश करने लगते हैं, जिससे मुद्दा ही बदल जाता है। दरअसल, समान नागरिक संहिता का यह मतलब कतई नहीं है कि इसकी वजह से विवाह मौलवी या पंडित नहीं करवा पाएंगे। समान नागरिक संहिता लागू होने पर भी परंपराएं बदस्तूर बनी रहेंगी। इतना ही नहीं नागरिकों के खान-पान, पूजा-इबादत और रहन-सहन पर इसका कोई असर नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने भारतीय विधि आयोग (लॉ कमीशन) को समान नागरिक संहिता पर रिपोर्ट देने के लिए कहा था। 31 अगस्त 2019 को दी गई अपनी लॉ कमीशन ने यूनिफार्म सिविल कोड और पर्सनल लॉ में सुधार पर सुझाव दिए थे। अलग-अलग लोगों से विस्तृत चर्चा और कानूनी, सामाजिक स्थितियों की समीक्षा करने के बाद लॉ कमीशन ने कहा था कि अभी देश में समान नागरिक संहिता लाना मुमकिन नहीं है। इसलिए नया क़ानून लाने की बजाय मौजूदा पर्सनल लॉ में सुधार किया जाए। इसके अलावा मौलिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता में संतुलन बनाने की ज़रूरत है। सभी समुदाय के बीच में समानता लाने से पहले एक समुदाय के भीतर स्त्री-पुरुष के अधिकारों में समानता लाने की कोशिश की जानी चाहिए।

समझा जाता है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार अगर समान नागरिक संहिता की तरफ़ आगे बढ़ती है तो सरकार के इस कदम से राजनीतिक विवाद हो सकता है क्योंकि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर राजनीतिक पार्टियां एकमत नहीं हैं। सेक्यूलरवादी राजनीतिक दल इसका शुरू से विरोध करते रहे हैं। समान नागरिक संहिता पर राजनीतिक दलों के अपने-अपने तर्क हैं। संसद समान नागरिक संहिता विधेयक को यदि पारित कर देती है तो देश भर में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू होगा। इसके बावजूद राजनीतिक हलकों में चर्चा हो गई है कि सरकार का अगला कदम समान नागरिक संहिता लागू करना है।

-हरिगोविंद विश्वकर्मा- (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

लेखक से अधिक

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

हमें फॉलो करें

98,381फैंसलाइक करें
526फॉलोवरफॉलो करें
178,000सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें

अन्य लेटेस्ट खबरें