नई दिल्ली। राजनाथ सिंह उदय माहूरकर और चिरायु पंडित द्वारा लिखित पुस्तक वीर सावरकर- द मैन हू कैन्ड प्रिवेंटेड पार्टिशन के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने सावरकर को बदनाम करने वालों को जमकर लताड़ लगाई। उन्होंने कहा कि सावरकर को बदनाम करने के लिए अभियान चलाया गया। यह वह लोग हैं जो मार्क्सवादी और लेनिनवादी हैं। रक्षा मंत्री ने कहा कि सावरकर हिंदूवादी नहीं थे, लेकिन राष्ट्रवादी यथार्थवादी थे।रक्षा मंत्री ने सावरकर को पहला रक्षा विशेषज्ञ बताते हुए कहा कहा कि आरएसएस के विचारक वीडी सावरकर ने भारत को मजबूत और राजनयिक सिद्धांत के साथ प्रस्तुत किया।
हेय दृष्टि से देखना न्याय संगत नहीं: पुस्तक विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सावरकर को शेर बताते हुए कहा कि जब तक शेर अपनी कहानी खुद नहीं कहता, तब तक शिकारी महान बना रहता है। उन्होंने कहा कि देश सावरकर के महान व्यक्तित्व व देशभक्ति से लंबे समय तक अपरिचित रहा। उन्होंने हेय दृष्टि से देखना न्याय संगत नहीं है। उन्हें किसी भी विचारधारा के चश्मे से देख कर उनको अपमानित करने वालों को माफ नहीं किया जा सकता है। सावरकर महानायक थे, हैं और रहेंगे। राजनाथ सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी का उल्लेख करते हुए कहा कि वाजपेयी ने सावरकर की सही व्याख्या की थी।
हिंदूवादी नहीं, राष्ट्रवादी यथार्थवादी थे: उन्होंने सावरकर को बदनाम करने वालों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि कुछ लोग उन पर नाजीवीदी व फांसीवादी होने का आरोप लगाते हैं। यह वह लोग हैं जो माक्र्सवादी व लेनिनवादी हैं। सावरकर हिंदुत्व को मानते थे, लेकिन वह हिंदूवादी नहीं, राष्ट्रवादी यथार्थवादी थे। उनके लिए देश राजनीतिक इकाई नहीं, सांस्कृतिक इकाई था। वीर सावरकर 20 वीं सदी के सबसे बड़े सैनिक व कूटनीतिज्ञ थे। सावरकर व्यक्ति नहीं विचार थे जो हमेशा रहेगा।
दया याचिका एक कैदी का अधिकार: 1910 के दशक में अंडमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सावरकर की दया याचिकाओं के बारे में विवाद का उल्लेख करते हुए, मंत्री ने कहा, “यह एक कैदी का अधिकार था। गांधी जी ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था। उनकी अपील में उन्होंने कहा कि सावरकर को रिहा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था जिस तरह हम शांति से आजादी के लिए लड़ रहे हैं, वह भी ऐसा ही करेंगे।” वही, रक्षा मंत्री ने कहा कि सही मायने में वीर सावरकर गुलामी की बेड़ियों को तोडना चाहते थे। उन्होंने महिलाओं के अधिकार सहित कई सामाजिक मुद्दों के खिलाफ आंदोलन चलाया। उन्होंने यह भी कहा उनके योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती है। उन्होंने संसद में रखी वीर सावरकर की तस्वीर का भी जिक्र किया। जिसका अधिकांश राजनीतिक दलों ने बहिष्कार किया था।
दया याचिका एक कैदी का अधिकार: 1910 के दशक में अंडमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सावरकर की दया याचिकाओं के बारे में विवाद का उल्लेख करते हुए, मंत्री ने कहा, “यह एक कैदी का अधिकार था। गांधी जी ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था। उनकी अपील में उन्होंने कहा कि सावरकर को रिहा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था जिस तरह हम शांति से आजादी के लिए लड़ रहे हैं, वह भी ऐसा ही करेंगे।” वही, रक्षा मंत्री ने कहा कि सही मायने में वीर सावरकर गुलामी की बेड़ियों को तोडना चाहते थे। उन्होंने महिलाओं के अधिकार सहित कई सामाजिक मुद्दों के खिलाफ आंदोलन चलाया। उन्होंने यह भी कहा उनके योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती है। उन्होंने संसद में रखी वीर सावरकर की तस्वीर का भी जिक्र किया। जिसका अधिकांश राजनीतिक दलों ने बहिष्कार किया था।