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Sunday, November 24, 2024
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महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा हलचल, ठाकरे और अंबेडकर ने मिलाया हाथ

गठबंधन भाजपा के लिए बनी चिंता

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महाराष्ट्र की राजनीतिक में एक नया घटनाक्रम देखने मिल रहा है दरअसल भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर की अध्यक्षता वाली वंचित बहुजन आघाडी ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ चुनाव के पूर्व गठबंधन करने का फैसला किया है। इस गठबंधन को शिव शक्ति का गठबंधन कहा जाएगा। वहीं चुनावी पंडितों का कहना है कि आनेवाले दिनों में राज्य की राजनीति पर इसका बड़ा असर देखने मिल सकता है।  

वहीं अगले साल होनेवाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव से पहले इस गठबंधन को फायदा मिल सकता हैं। 2023 में बीएमसी के चुनाव के अलावा 2024 में लोकसभा और फिर महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव पर इसका असर देखने को मिल सकता है। लेकिन देखना यह है कि क्या ठाकरे- अंबेडकर गठबंधन आनेवाले चुनाव तक कायम रहेगी। गठबंधन कायम रहने से महाराष्ट्र की प्रगतिशील राजनीति में यह सामाजिक सुधार के एजेंडे को पुनर्जीवित कर सकता है। माना यह जा रहा है कि वीबीए द्वारा उद्धव के साथ हाथ मिलाने के बाद महाविकास आघाडी का गठबंधन मजबूत होगा।
 

गठबंधन पर प्रकाश अंबेडकर ने कहा, “उद्धव ठाकरे ने कुछ दिन पहले गठबंधन का विषय उठाया था। उन्होंने कहा कि वीबीए में शामिल लोगों से विचार विमर्श करने के बाद ही उद्धव बालासाहेब ठाकरे के साथ साझेदारी का फैसला किया गया। हालांकि अंबेडकर ने यह भी कहा कि उद्धव को गठबंधन तय करना होगा। यानी उनको तय करना होगा कि काँग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन जारी रखना है और वीबीए को चौथे नंबर पर गठबंधन सहयोगी के रूप में रखना होगा। या फिर शिवसेना और वीबीए ही गठबंधन सहयोगी होंगे। वहीं सीटों के बंटवारे जैसे मुद्दे बाद में देखे जाएंगे। हालांकि वीबीए के पास वर्तमान में कोई सांसद या विधायक नहीं है, लेकिन पार्टी का ओबीसी के बीच कुछ आधार माना जाता है।  

वहीं शिवसेना ने खुलासा किया है कि ठाकरे काँग्रेस और एनसीपी के साथ अपने गठबंधन को तोड़े बिना बीवीए को अपने पार्टी में शामिल करेंगे। वहीं शिवसेना-वीबीए का गठबंधन भाजपा के लिए चिंता का नया कारण बन सकता है। बात यदि भाजपा के मौजूदा गठबंधन की बात करें तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बालासाहेबंची शिवसेना और केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया शामिल हैं। इस गठबंधन की सहायता से ओबीसी, मराठों के साथ ही अब दलित मतदाताओं को भी अपने पक्ष में लेने की कोशिश करेंगे जो भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए एक चुनौती होगी।  

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