24 नवंबर 2022 को एक इंटरव्यू में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा बीजेपी यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए तत्पर है और बीजेपी इसे लाकर रहेगी। इस बयान के ठीक 15 दिन बाद यानि 9 दिसंबर को बीजेपी राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने यूनिफ़ार्म सिविल कोड लागू करने को लेकर राज्यसभा में प्राइवेट बिल पेश किया।
हालांकि इसके बाद कांग्रेस और टीएमसी सहित कई विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। वे इसे वापस लेने की मांग करने लगे। इसके बाद उप-राष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने वोटिंग कराई। बिल के समर्थन में 63 वोट मिले जबकि विरोध में 23 वोट। इस तरह राज्यसभा में यह बिल पेश हो गया। यानी देश में यूनिफ़ार्म सिविल कोड बिल लागू करने के लिए पहला सियासी कदम उठा लिया गया है। प्राइवेट मेम्बर बिल के जरिए ही सही बीजेपी ने देशभर में कॉमन लॉ बनाने के लिए वाटर टेस्टिंग शुरू कर दी है।
आप असंजस में होंगे प्राइवेट बिल यानी क्या दरअसल राज्यसभा या लोकसभा में दो तरह से बिल पेश किए जा सकता है। एक सरकारी बिल यानी पब्लिक बिल और दूसरा प्राइवेट मेंबर बिल। सरकारी बिल सरकार का कोई मंत्री पेश करता है। यह किसी भी दिन सदन में पेश किया जा सकता है। जबकि प्राइवेट बिल सिर्फ शुक्रवार को सदन में पेश किया जाता है। प्राइवेट मेंबर बिल सदन यानी लोकसभा या राज्यसभा का कोई भी मेंबर जो मंत्री नहीं हो, वह पेश कर सकता है। इसे पेश करने से पहले सांसद को प्राइवेट मेम्बर बिल का ड्राफ्ट तैयार करना होता है। उन्हें 1 महीने का नोटिस सदन सचिवालय को देना होता है। सदन सचिवालय जांच करता है कि बिल संविधान के प्रावधान के अनुरूप है या नहीं। जांच के बाद इसे लागू राज्यसभा का चैयरमैन या लोकसभा का स्पीकर करता है। यही वजह है भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के इस बिल को प्राइवेट मेंबर बिल कहा गया।
बिल मंजूर हो जाने के बाद सदन में उस पर चर्चा होती है। इसके बाद उस पर वोटिंग होती है। अगर बिल दोनों सदनों से बहुमत पास हो जाता है, तो उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद बिल कानून बन जाता है। 1952 के बाद अब तक हजारों प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए गए। इनमें से सिर्फ 14 प्राइवेट मेंबर बिल ही कानून का रूप ले सके। आखिरी प्राइवेट मेंबर बिल था जो 1970 में कानून बना। इसके बाद कोई भी प्राइवेट बिल दोनों सदनों से पास नहीं हो सका है।
आखिर यूनिफ़ार्म सिविल कोड है क्या? क्यूँ इस मुद्दे को लेकर देश में बहस छिड़ी हुई है? क्या ये कानून बन पाएगा? आज हम यूनिफ़ार्म सिविल कोड के बारे में जानेंगे साथ ही यह भी जानते है कि बीजेपी के लिए कैसे ये निर्णायक हो सकता है। धारा 370 और उसके बाद अयोध्या राम मंदिर का मुद्दा। ये ऐसे मामले है जिसे लेकर बीजेपी सत्ता में अपने आप को मजबूती से बना रखी हैं। और इन सब के बीच यूनिफ़ार्म सिविल कोड भी एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे आगामी चुनाव में बीजेपी अपनी बड़ी सफलता या कठोर निर्णय के तौर पर इसे लागू कर सकती है। बीजेपी का प्रयास है कि देश में बीजेपी शासित राज्यों में इसे लागू किया जा सके। वहीं भाजपा शासित राज्य गोवा अभी एक मात्र राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है। ये पुर्तगाली सिविल कोड 1867 के नाम से जाना जाता है। यानी बीजेपी द्वारा अपने ही क्षेत्र से इसे लागू करने की शुरुवात की जा रही है। जिसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम जैसे कई राज्य है।
आमतौर पर किसी भी देश में दो तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल कानून और सिविल कानून। क्रिमिनल कानून में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें सभी धर्मों या समुदायों के लिए एक ही तरह की कोर्ट, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है। यानी कत्ल हिंदू ने किया है या मुसलमान ने या इस अपराध में जान गंवाने वाला हिंदू था या मुसलमान, इस बात से FIR, सुनवाई और सजा में कोई अंतर नहीं होता।
सिविल कानून में सजा दिलवाने की बजाय समझौते या मुआवजे पर जोर दिया जाता है। मसलन दो लोगों के बीच संपत्ति का विवाद हो, किसी ने आपकी मानहानि की हो या पति-पत्नी के बीच कोई मसला हो या किसी निजी संपत्ती का प्रॉपर्टी विवाद हो। ऐसे मामलों में कोर्ट समझौता कराता है, पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाता है। सिविल कानूनों में परंपरा, रीति-रिवाज और संस्कृति की खास भूमिका होती है।
शादी-ब्याह और संपत्ति से जुड़ा मामला सिविल कानून के अंदर आता है। भारत में अलग-अलग धर्मों के शादी-ब्याह, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। इन्हीं के आधार पर धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग-अलग कानून भी हैं। यही वजह है कि इस तरह के कानूनों को हम पसर्नल लॉ भी कहते हैं। जैसे- मुस्लिमों की शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए होती है। वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ है।
वहीं यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को खत्म करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। यानी भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। जैसे- पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।
बता दें कि सन 1835 ब्रिटिश सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की। इसमें क्राइम, सबूत और कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर देशभर में एक सामान कानून बनाने की बात कही गई। 1840 में इसे लागू भी कर दिया गया, लेकिन धर्म के आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इससे अलग रखा गया। बस यहीं से यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग की जाने लगी। जबकि 1941 में बीएन राव कमेटी बनी। इसमें हिंदुओं के लिए कॉमन सिविल कोड बनाने की बात कही गई।आजादी के बाद 1948 में पहली बार संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया गया। इसका मकसद हिंदू महिलाओं को बाल विवाह, सती प्रथा, घूंघट प्रथा जैसे गलत रिवाजों से आजादी दिलाना था। इसके बाद 1955 और 1956 में नेहरू ने इस कानून को 4 हिस्सो में बांटकर संसद में पास करा दिया। जिसके बाद अब हिंदू महिलाओं को तलाक, दूसरे जाति में विवाह, संपत्ति का अधिकार, लड़कियों को गोद लेने का अधिकार मिल गया। पुरुषों की एक से ज्यादा शादी पर रोक लगा दी गई। महिलाओं को तलाक के बाद मेंटेनेंस का अधिकार मिला।
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सबसे ज्यादा विरोध अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। इसलिए शादी-ब्याह और परंपराओं से जुड़े मामले में सभी पर समान कानून थोपना संविधान के खिलाफ है। संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग- 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा है। राज्य के नीति-निदेशक तत्व से संबंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, देशभर में नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कराने का प्रयास करेगा।’ हमारे संविधान में नीति निदेशक तत्व सरकारों के लिए एक गाइड की तरह है। इनमें वे सिद्धांत या उद्देश्य बताए गए हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए सरकारों को काम करना होता है।
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