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Saturday, November 23, 2024
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संजय राउत की ये मांग पाखंड!

राउत ने हारपुर भूमि घोटाला मामले में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की आलोचना की।

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संजय राउत गोरेगांव पात्रा चॉल मामले में नामजद है। आरोप है कि इस पात्रा चॉल घोटाले के चलते बिल्डरों को फायदा देने के लिए 672 मराठी परिवारों को बेदखल कर दिया गया। ईडी द्वारा गिरफ्तारी के 101 दिन बाद कोर्ट ने संजय राउत को जमानत दे दी। अब संजय राउत जमानत पर बाहर हैं। एक तरफ जहां पात्रा चॉल मामले में उन पर आरोप लग रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ संजय राउत द्वारा मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने की तस्वीर देखने को मिल रही है। राउत ने हारपुर भूमि घोटाला मामले में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की आलोचना की। वहीं महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री शिंदे की पैरवी कर रहे हैं। संजय राउत ने यह यह आरोप लगाया है।

एक ओर, यह बताया जा रहा है कि वितरण कैसे किया गया है। लेकिन ये आरोप लगाते वक्त संजय ये भूल गए कि हमारी सरकार के समय क्या आरोप लगाए गए थे। माविया की सरकार के पिछले ढाई साल के दौरान उनके नेताओं पर रंगदारी के आरोप लगते रहे हैं। वसूली कैसे की जाए, इस बारे में तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा था। उस पत्र में सचिन वाझे को हर महीने 100 करोड़ रुपये का लक्ष्य दिया गया था, उस समय तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख ने इस मामले को लेकर आरोप लगाया था। जिसपर संजय राउत ने कभी मुहँ नहीं खोला।

संजय राउत ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाते हुए कहा कि क्या इस मामले में दिल्लीवालों ने गुंगी का इंजेक्शन लगाया है। पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक सीमावाद अचानक भड़क उठा है। इसमें भी संजय राउत कूद पड़े हैं। उनका कहना है कि बोम्मई रोज उठकर कान पर लगाते हैं और मुख्यमंत्री उनके गाल पर हाथ फेरते हैं। राउत भूल गए होंगे कि कर्नाटक विवाद को लेकर जिस एकनाथ शिंदे पर संजय राउत मुख्यमंत्री पर आरोप लगा रहे हैं, वही एकनाथ शिंदे कर्नाटक की जेल में समय बिता चुके हैं। लेकिन उस पर भी राउत सुबह आकर पत्रकारों के सामने यह कहने से नहीं हिचकिचाएंगे कि अरे मैं भी जेल गया हूं। राउत जेल गए, लेकिन वह किस वजह से यह सभी जानते हैं।

वहीं इस आरोप के बाद एकनाथ शिंदे ने इस आरोप का खंडन किया और अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि बिल्डर को हम 350 करोड़ रुपए फ्री में नहीं देते। स्लम अतिक्रमण भूमि के लिए 350 करोड़ दिया गया। अब वह बिल्डर 1000 करोड़ मांग रहे है। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि अमीर लोगों को पैसा देकर मुंबई में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ। फिर भी महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने विरोध किया और विधान सभा परिसर में नारेबाजी की। पात्रा चॉल घोटाले के सिलसिले में राउत जेल गए थे। ईडी ने उन पर आरोप लगाया और उसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अब वह जमानत पर बाहर हैं। एक ओर हमारे ही पांव कीचड़ में धंसे हुए हैं और दूसरी ओर हम कीचड़ उछाल रहे हैं। यही हाल संजय राऊत का है।

जिस पात्रा चॉल मामले में संजय राउत आरोपी हैं, उससे वहां के निवासियों को काफी परेशानी हो रही है। इनका निर्माण 15 साल से ठप है। वे कई सालों से बेघर हैं। उन्हें उनका वाजिब किराया भी नहीं मिल रहा है। तो कुछ लोगों ने किराया न देने पर गांव की राह पकड़ ली। मुंबई छोड़ना पड़ा। कुछ बदलापुर, डोंबिवली, विरार पहुंचे। कई साल से किराया नहीं मिलने से नाराज पात्रा चॉल के रहवासियों ने म्हाडा के कार्यालय पर धरना प्रदर्शन किया। एक तरफ जो लोग कहते हैं कि मुंबई मराठी लोगों की है तो वहीं लोग मराठी लोगों को मुंबई से बाहर जाने के लिए मजबूर करते हैं।

बात यहाँ पात्रा चॉल घोटाले की ही नहीं है, बल्कि मविया सरकार के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री पर वसूली के आरोप लगे थे। कुख्यात आतंकी दाऊद इब्राहिम से संबंध होने के कारण मंत्री नवाब मलिक मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जेल गए थे। लेकिन उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। तत्कालीन पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह बाद में जेल गए। उस समय संजय राउत ने इन सभी से इस्तीफे की मांग नहीं की थी। यहां तक कि नवाब मलिक भी जेल से ही मंत्री के तौर पर फैसले ले रहे थे।

इस्तीफे की मांग करने वाले ज्यादातर माविया नेता यह भूल गए होंगे कि उनका रिश्ता दाऊद से है। नवाब मलिक दाऊद का करीबी था जो देशद्रोही, अपराधी, फरार है। उद्धव ठाकरे आज शिंदे के इस्तीफे की बात कर रहे हैं लेकिन उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में मलिक का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। इसके विपरीत, उद्धव ठाकरे ने तत्कालीन एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े के खिलाफ मलिक द्वारा लगाए गए आरोपों के लिए मलिक की प्रशंसा की। उस समय नवाब मलिक और अनिल देशमुख ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया। संजय राउत ने उस समय इस्तीफा क्यों नहीं मांगा। अनिल देशमुख ने 100 करोड़ का घोटाला किया बावजूद इसके एक्शन क्यूँ नहीं लिया गया। इसके विपरीत महाविकास अघाड़ी सरकार के सत्ता में आने के बाद से एकतरफा कार्रवाई, सत्ता का दुरुपयोग और बदले की राजनीति देखने को मिली है।

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