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Friday, September 20, 2024
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भारत विरोधियों के लिए एससी “हथियार”

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मुगलों और अंग्रेजों के काल में हिन्दुस्तानियों को कितनी यातनाएं दी, यह कहना मुश्किल है। क्योंकि जिस तरह हम लोग भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद, महाराणा प्रताप आदि के बारे में पढ़ते है तो यह समझ में आता है कि कैसे भारत के सपूतों को यातनाएं दी गई। उनके साथ उस समय कैसा सलूक किया गया। आज की पीढ़ियां इसे भूला चुकी हैं। लेकिन इसके लिए पीढ़ियां ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि हमारा राजनीतिक तंत्र भी दोषी है।

भारत के गौरव को छिपा दिया गया। कई सपूतों के नाम इतिहास के पन्नों से फाड़ दिए गए। जो आज गुमनाम हैं। लेकिन आज हम जिस आजादी का जश्न मनाते हैं उन्हीं के बलिदान की वजह से मनाते हैं। आज भी इस देश में कुछ ऐसे लोग है जो चाहते हैं कि भारत मुगलों और अंग्रेजों की कठपुतली बना कर रहे। भारत अब गुलामी की विरासतों से मुक्ति पाना चाहता है तो कांग्रेस और वाम जैसे दल इस संबंध में नसीहत देते नजर आते हैं।

यही कारण है कि वैचारिक तौर पर भारत पर आक्रमण किया जा रहा है। जिसका विपक्ष समर्थन कर रहा है। जिसकी वजह से भारत में वैचारिक मतभेद पैदा हो रहे हैं। जिस पर सवाल उठने लगे हैं। संघ की पत्रिका पांचजन्य की सम्पादकीय में सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की गई है। यह आलोचना हाल ही में बीबीसी डाक्यूमेंट्री को बैन करने के विरोध में दायर याचिका पर की गई है।

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें बीबीसी डाक्यूमेंट्री पर से बैन हटाने की मांग की गई थी। जिस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए बीबीसी डाक्यूमेंट्री पर से तत्काल हटाने से इंकार कर दिया था। जबकि केंद्र सरकार को इस संबंध में एक नोटिस भेजा था। जिसका जवाब तीन सप्ताह में देने को कहा गया था। बता दें कि इस संबंध में कई याचिकाएं लगाई गई थी।

अभी भी मुगलों और अंग्रेजों के गुलामी के निशान मिटे नहीं है। आज भी जहां-तहां उनके ही नाम पर चौक चौराहें है। लेकिन जब इनका नाम बदला जाता है तो इस पर राजनीति शुरू हो जाती है। यह इस बात का सबूत है कि लोग आज भी मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी से जकड़ा रहना चाहते है। उनके विचारों को भारत के लोगों पर थोपना चाहते है। यह सदियों से चला आ रहा है और जब इसका विरोध होता है तो हमारे लोगों को भला बुरा कहा जाता है। एक बार ऐसा ही किया गया।

पांचजन्य ने अपने सम्पादकीय में बीबीसी को दुष्प्रचार और भारत को बदनाम करने वाली संस्था बताया है। शीर्ष अदालत भारत की है जो यहां के टैक्सपेयर्स के पैसे से चलती है। उसका काम भारत के संविधान के अनुसार देश के हितों के लिए करना है। इस संस्था का सृजन भारत अपने हित के लिये किया है। लेकिन अब यह संस्था भारत विरोधियों के लिए एक औजार बन गई है। जब चाहो तब इसका उपयोग किया जा सकता है। हर बात पर विपक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाता है।
सम्पादकीय में कहा गया है कि आतंकियों को मानवाधिकार के नाम पर संरक्षण दिया जाता रहा है। इतना ही नहीं भारत के विकास कार्यों को पर्यावरण संरक्षण की आड़ लेकर उसे रोकने की कोशिश किया जाता है। यह भारत को कमजोर करने की कोशिश है।

आतंकी याकूब मेमन के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। इस देश के लिए कितनी बुरी बात है कि इस प्रपंच की वजह से कई दशकों तक लोगों को सुविधाओं से वंचित रखा गया। कहीं पानी था तो कहीं बिजली नहीं थी। उन्हें गरीब बताकर केवल उनका शोषण किया गया। सवाल है कि क्या 2014 से पहले भारत के पास क्षमता नहीं थी। जो आज दिख रही है। आज भारत हर क्षेत्र झंडा बुलंद किया हुआ है। उस समय कई मुद्दे देश और समाज को बांटने के लिए उठाये जाते थे। लेकिन आज ऐसा नहीं है आज ऐसा लगता है कि विपक्ष के पास मुद्दे ही नहीं हैं। तरह से विपक्ष कोर्ट को अपने हथियार के तौर पर उपयोग करता नजर आ रहा है।

याकूब मेमन का मामला इसका उदाहरण है। गौरतलब है कि 29 जुलाई 2015 को मुंबई धमाके का दोषी याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए आधी रात को कोर्ट में सुनवाई की गई थी । तब यह सुनवाई 90 मिनट तक चली थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फांसी पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। आतंकी जो सैकड़ो लोगों के मौत का जिम्मेदार था उसे बचाने के लिए आधी रात को कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। इससे बुरा इस देश के लिए और क्या हो सकता है। एक देशद्रोही को बचाने का विपक्ष प्रयास किया था ।

अब एक बार फिर भारत को बदनाम करने के लिए अंग्रेजों ने गुजरात दंगों का सहारा लिया है।  बीबीसी डाक्यूमेंट्री को जिस तरह से विपक्ष ने हाथों हाथ लिया उसकी मानसिकता को दर्शाता है। विपक्ष ने बीबीसी डाक्यूमेंट्री का समर्थन कर एक तरह से सुप्रीम कोर्ट का अनादर ही किया है।  यह पहला मौक़ा नहीं है जब गुजरात दंगों पर अंगुली उठाई गई है। कोर्ट द्वारा इस मामले पर निर्णय हो जाने के बाद भी विपक्ष इस मुद्दे को उछालता रहता है। सवाल यह है कि आखिर  विपक्ष इस मुद्दों को क्यों बार ज़िंदा करता है और राजनीति रोटी सेंकता है।

वर्तमान में भारत हर क्षेत्र में लंबी छलांग लगा रहा है। आज विदेश का हर नेता पीएम मोदी का साथ चाहता है। पर विपक्ष आज जिस तरह से पीएम मोदी से खार खाये हुए है और उनकी लोकप्रियता को पचा नहीं पा रहा है। मोदी सरकार के हर काम में विपक्ष टांग फंसाता है। आज भारत जी 20 की अध्यक्षता कर रहा है। दुनिया भर में भारत की छवि में सुधार हुआ है। कभी नरेंद्र मोदी पर गुजरात दंगों को लेकर अमेरिका ने उन्हें वीजा देने से मना कर दिया था , लेकिन आज उसी देश के राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री से मिलने के लिए बेकरार रहते हैं।

जिस मानवाधिकार की बात कर अमेरिका ने नरेंद्र मोदी को अमेरिका जाने से बैन किया था। उस अमेरिका की आँख तब खुली जब उसके यहां आतंकी हमला हुआ। आज भारत के विदेश नीति की हर कोई बात करता है। अमेरिका ही नहीं कई देश कह चुके हैं कि अगर भारत के प्रधानमंत्री चाहेंगे तो रूस और यूक्रेन का युद्ध रुक सकता है। लेकिन विपक्ष को भारत की यह छवि पसंद नहीं आ रही है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भारत की आत्मनिर्भरता पर करारा चोट है। आज  भारत आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है। लगभग हर देश  मंदी महंगाई की चपेट में हैं लेकिन भारत इससे अछूता आगे बढ़ता जा रहा है।

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