साफगोई राजनीति में कभी भी देखने को नहीं मिलती है। इसकी वजह जो भी हो लेकिन राजनीति में एक चीज आम है, यहां हर पार्टी एक दूसरे पर कीचड़ उछालना अच्छी तरह जानती है। मगर साफगोई से पार्टी के नेताओं का दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होता है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में आये चुनाव परिणाम में कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं दे रही है। इस पर कांग्रेस को मंथन करना चाहिए। मै जितनी भी राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा की वीडियो बनाया हूं, उसमें मैंने साफ़-साफ़ कहा है कि यह केवल भीड़ है और इस भीड़ के साथ भावना या लगाव नहीं है। यह मात्र दिखावा है। कुछ अभिनेत्री और अभिनेता भी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए। मानो वे इस यात्रा में मात्र अपनी तस्वीर निकालने आये थे।
इस यात्रा के बारे में राहुल गांधी और कांग्रेस के नेताओं ने न जाने क्या क्या कह डाले। कोई तपस्या कहा, कोई इसे साधना कहा। लेकिन क्या राहुल गांधी ने साधना की, क्या कांग्रेसी नेताओं ने एक तपस्वी की तरह इस यात्रा में शामिल हुए? यह राहुल गांधी को खुद से पूछना चाहिए ,क्या मात्र दाढ़ी बढ़ा लेने से वे तपस्वी या साधना करने वाले व्यक्ति बन गए। मै पहले ही कह चुका हूँ कि भारत जोड़ो यात्रा न महंगाई और न बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर निकाली गई थी।
बल्कि यह कांग्रेस का राजनीति स्टंट था। जो सफल नहीं हुआ, बल्कि असफलता की नई कहानी लिखी। अगर यह यात्रा महंगाई और बेरोजगारी को लेकर निकाली गई तो क्यों नहीं जनता इसमें शामिल हुई। इस यात्रा में केवल कांग्रेस के विचारधारा से जुड़े ही लोग शामिल हुए थे। कांग्रेस को यात्रा के दौरान ही इस संबंध में आकलन करने की जरूरत थी, लेकिन जिस अहंकार का जिक्र राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुए अधिवेशन में किया था। वही, अहंकार कांग्रेस और राहुल गांधी के साथ अभी भी चल रहा है। जब तक वे और उनकी पार्टी उस अहंकार को परे नहीं करेगी, कांग्रेस की खाट ऐसे ही खड़ी होती रहेगी।
इतनी लंबी चौड़ी बातें कहने का मतलब यही है कि कांग्रेस झूठ को गले लगाया और साफगोई को धक्का देकर लोकतंत्र को कटघरे में खड़ी करती रही। यह कांग्रेस का अहंकार ही है। राहुल ने अधिवेशन में यह माना कि उनके अंदर अहंकार है। जो कुछ दूर यात्रा करने के बाद समाप्त हो जाता है। लेकिन जो व्यक्ति अपनी आधी उम्र इसी यात्रा में बीता दी हो तो क्या उसके पास अहम यानी अहंकार होगा। क्या इसका राहुल गांधी जवाब देंगे। वैसे राहुल गांधी बिना सिर पैर की बात करते है, तो इस सवाल का जवाब भी वैसे ही मिलने की उम्मीद है।
बहरहाल, राहुल गांधी का यही अहंकार कांग्रेस के लिए अभिशाप बन गया। जिस हिमंत बिस्वा सरमा को राहुल गांधी ने अपमानित किया ,वही, हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस की जड़ में मट्ठा डालकर कांग्रेस को खत्म करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। कांग्रेस को हिमंत बिस्वा सरमा के साथ किये गए व्यवहार पर अफ़सोस जताना चाहिए। लेकिन, कांग्रेस ऐसा करेगी यह बड़ा सवाल है। यही वजह है कि आज कांग्रेस पूर्वोत्तर से साफ़ हो गई। तीनों राज्यों की कुल 180 सीटन में से केवल आठ पर ही जीत दर्ज कर पाई है। एक समय था कि तीनो राज्यों में कांग्रेस की लहर थी, लेकिन, आज अमित शाह के अनुसार, कांग्रेस को दूरबीन लेकर ढूढ़ना पडेगा। तब भी कांग्रेस दिखाई देगी की नहीं यह कह पाना मुश्किल है।
बता दें कि, त्रिपुरा में कांग्रेस को केवल तीन और मेघालय में 5 सीटें मिली हैं। देखा जाए तो पूरे देश में चार हजार तैंतीस विधायक हैं। जिसमें से केवल छह सौ अनठावन विधायक कांग्रेस के है। जो 2014 में 24 फीसदी थे अब मात्र 16 फीसदी के बराबर है। यानी हम यह भी कह सकते हैं कि चार राज्यों में कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है। नागालैंड, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और दिल्ली में एक भी विधायक नहीं हैं। 2021 में वेस्ट बंगाल में भी कोई विधायक नहीं था,हालांकि बंगाल के सागरदिघी में हुए उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली है। जिसका परिणाम गुरुवार को आया था।
कुछ ऐसे राज्य भी हैं जहां कांग्रेस के विधायक नाम मात्र हैं। देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश में मात्र कांग्रेस के 2 विधायक हैं। जबकि बिहार में 19 विधायक हैं। जो राजनीति रूप से मायने रखते हैं। तमिलनाडु, उड़ीसा और तेलंगाना ऐसे राज्य है जहां कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर है। जबकि बीजेपी लगातार मजबूत हो रही है। इतना ही नहीं 10 राज्यों में कांग्रेस के मात्र 10 ही विधायक हैं। कहा जा रहा है कि 137 साल के इतिहास में कांग्रेस का यह दौर बहुत बुरा है। अगर कांग्रेस को फिर राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर उभरना है तो उसे पहले अपने मुद्दे और साफगोई को स्वीकारना होगा। अन्यथा कांग्रेस एक क्षेत्रीय पार्टी बनकर रह जायेगी।
वैसे भी,पिछले कुछ समय से कांग्रेस ने अपने को बदलने की कोशिश की है, लेकिन क्या यह बदलाव कारगर साबित हो रहा है। यह बात कांग्रेस को खुद से पूछना चाहिए। उसे यह जानने की कोशिश करनी चाहिए की बीजेपी, मोदी, अडानी या संघ का नाम लेकर सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती बल्कि उसे जमीन पर काम करना होगा। बयान के साथ गंभीरता लाना होगा तभी कांग्रेस कल्याण होगा अन्यथा, कांग्रेस का भगवान ही मालिक है।
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